Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-5 101 समकित : गुण, द्रव्य के सभी भागों (प्रदेशों) व सभी अवस्थाओं (पर्यायों) में पाये जाते हैं। प्रवेश : सभी अवस्थाएं (पर्यायें) तो समझा, लेकिन सभी भागों (प्रदेशों) का क्या मतलब है? समकित : इसका मतलब है कि ज्ञान आदि अनंत गुण जीव द्रव्य के किसी निश्चित स्थान में नहीं बल्कि पूरे जीव द्रव्य में पाये जाते हैं। इन गुणों की अवस्था ही पर्याय है, जो निरन्तर बदलती रहती है। प्रवेश : कैसे? समकित : हम जीव द्रव्य के गुण-पर्याय के बारे में निम्न चार्ट के द्वारा समझेंगेः द्रव्य | गुण __ पर्याय अशुद्ध मिथ्या-ज्ञान सम्यक-ज्ञान जीव श्रद्धा मिथ्या-श्रद्धा सम्यक-श्रद्धा चारित्र मिथ्या-चारित्र सम्यक-चारित्र सुख दुःख सुख इस चार्ट में हमने देखा किः ज्ञान 1. जीव में, पदार्थों को जान सके ऐसा एक ज्ञान नाम का गुण है लेकिन वर्तमान में उसकी पर्याय स्वंय को न जानकर सिर्फ दूसरों (पर) को जानने रूप हो रही है। यह ज्ञान गुण की अशुद्ध-पयोय है। ज्ञान गुण की इस अशुद्ध-पर्याय का नाम ही अगृहीत-मिथ्याज्ञान है। 2. जीव में, पदार्थों में अपनापन कर सके ऐसा एक श्रद्धा नाम का गुण है जिसकी पर्याय स्वंय में अपनापन न करके दूसरों में अपनापन करने रूप हो रही है। श्रद्धा गुण की इस अशुद्ध पर्याय का नाम अगृहीतमिथ्याश्रद्धा (मिथ्यादर्शन) है। 3. जीव में, पदार्थों में लीन हो सके ऐसा एक चारित्र नाम का गुण है जिसकी पर्याय स्वंय में लीन न होकर दूसरों में लीन होने रूप हो रही है। चारित्र गुण की इस अशुद्ध पर्याय का नाम अगृहीत-मिथ्याचारित्र 1.specific 2.continuously 3.at-present 4.self 5.impure-state 6.inborn-false knowledge 7.inborn-false belief 8.inborn-false immersedness