Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 83 प्रवेश : भाईश्री ! यदि प्रत्येक द्रव्य में यह अस्तित्व गुण न होता तो क्या होता? समकित : वही होता जो किसी को मंजूर नहीं होता, यानि कि विश्व का नाश। प्रवेश : क्यों? समकित : क्योंकि हम पहले ही देख चुके हैं कि अनंत द्रव्यों का समूह ही विश्व है। यदि एक भी नया द्रव्य उत्पन्न हुआ या पुराना द्रव्य नष्ट हुआ तो वह अनंत द्रव्यों का समूह नष्ट हो जायेगा और द्रव्यों का समूह नष्ट होने से पूरा विश्व नष्ट हो जायेगा, लेकिन अस्तित्व गुण के कारण ऐसा होना असंभव है यानि कि विश्व का नाश कभी नहीं हो सकता। प्रवेश : हाँ, तत्वार्थ सूत्र में भी आता है-सत् द्रव्य लक्षणम् यानि कि द्रव्य का लक्षण सत् (शाश्वतता) है और चूँकि द्रव्यों का समूह ही विश्व है, इसलिये विश्व का लक्षण भी सत् (शाश्वतता) होगा। समकित : बहुत अच्छे ! अब जबकि हर द्रव्य में अस्तित्व गुण मौजूद है जिसके कारण न तो विश्व उत्पन्न ही होता है, न ही नष्ट, तो फिर विश्व को उत्पन्न और नष्ट करने वाले किसी कर्ता-हर्ता, सर्व-शक्तिमान परमात्मा की जरुरत भी नहीं रहती। प्रवेश : यदि हम ऐसा माने कि कोई सर्व-शक्तिमान परमात्मा विश्व का कर्ता-हर्ता है तो क्या दिक्कत है ? समकित : यदि हम ऐसा माने कि कोई सर्व शक्तिमान परमात्मा ने इस विश्व को उत्पन्न किया है तो फिर यह प्रश्न खड़ा होता है कि परमात्मा को किसने उत्पन्न किया ? तो फिर एक ही उत्तर से संतोष करना पड़ता है कि परमात्मा तो स्वयं-सिद्ध" है यानि न तो उसे किसी ने उत्पन्न किया है न ही कोई उसका नाश कर सकता है। प्रवेश : तो...? 1.accept 2.creat 3.destroy 4.nature 5.present 6. creator-destructor 7.almighty 8.problem 9.creat 10.satisfaction 11.self-existing