Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 समकित : हाँ, बिल्कुल! जिस तरह गुणों का समूह द्रव्य है उसी तरह एक-के-बाद-एक उत्पन्न होने वाली धारावाही अनंत पर्यायों का समूह गुण है। प्रवेश : अच्छा ! यदि ऐसा है तो किस समय कौन सी पर्याय उत्पन्न होगी और कौनसी पर्याय नष्ट होगी ये कैसे तय होता है ? समकित : इसको हम एक जाप-माला के माध्यम से समझते हैं। माला में मेरू के बाजू से शुरु होकर एक के बाद एक 108 मोती होते हैं। जहाँ पहला मोती खत्म होता है, वही से दूसरा मोती शुरु हो जाता है। जहाँ दूसरा मोती खत्म होता है वहाँ से तीसरा मोती शुरु हो जाता है यानि कि सभी मोती अपने-अपने निश्चित स्थान पर नियत रहते हैं। न ही तो उन मोतियों को आगे-पीछे किया जा सकता है न ही कोई नया मोती माला के अंदर डाला जा सकता है और ना ही माला में से कोई मोती बाहर निकाला जा सकता है और यदि हम ऐसा करना चाहते हैं तो हमको माला तोड़नी होगी। उसी तरह जिस समय द्रव्य की एक पर्याय नष्ट होती है उसी समय दूसरी पर्याय उत्पन्न हो जाती है। द्रव्य की अनादि से अनंत काल तक की सभी पर्यायें अपने-अपने निश्चित-समय पर उत्पन्न होती हैं। न ही तो उनको आगे-पीछे किया जा सकता है, न ही किसी अनिश्चित पर्याय को उत्पन्न कराया जा सकता है और न ही किसी निश्चित पर्याय को उत्पन्न होने से रोका जा सकता है। यानि कि यदि हम ऐसा करना चाहते हैं तो हमें द्रव्य को नष्ट करना होगा जो कि असंभव है क्योंकि द्रव्य तो सत यानि कि अनादि-अनंत है। प्रवेश : ओह ! अब समझा। समकित : हाँ ! इसलिये इस चिंता मे आकुलित/दुःखी होते रहना कि बालों की कालेपन की पर्याय नष्ट न हो और सफेदी की पर्याय उत्पन्न न हो, यह मात्र समय" और ऊर्जा की बर्बादी है। 1.serially 2. sequential 3.rosary 4.example 5.central pearl 6.fix 7.certain-time 8.un-certain 9.certain 10.eternal 11.time 12.energy