Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-4 समकित : रोने का मतलब है इस बात के लिये दुःखी होना कि मेरा कोई कछ नहीं करता और गाने का मतलब है इस बात का अभिमान' करना कि मैंने फलाने के लिये ये किया, ढिकाने के लिये ये किया, तो वस्तुत्व गुण कहता है कि जब सब द्रव्य अपना-अपना काम करने में सक्षम है, कोई दूसरे का काम कर ही नहीं सकता तो फिर रोना-गाना किस बात का? प्रवेश : भाईश्री ! यह तो बहुत अच्छी तरह से समझ में आ गया कि भगवान या कोई और न तो इस विश्व का कर्ता-हर्ता हो सकता है, न ही पालक। लेकिन हम फिर जिनेन्द्र भगवान को मोक्ष/ कल्याण के कर्ता और संसार-रूपी दुःख का हर्ता क्यों बोलते हैं ? समकित : अरे भाई ! वास्तव में तो वस्तुत्व गुण के कारण हम खुद ही अपने मोक्ष/कल्याण के कर्ता (करने वाले) और संसार रूपी दुःख के हर्ता (दूर करने वाले) हैं। भगवान हमारे मोक्ष (कार्य) के कर्ता और संसार मार्ग (रास्ते) का वर्णन आया है। उस मार्ग पर चलकर हम अपना मोक्ष (कार्य) प्रगट कर सकते हैं। अतः भगवान और भगवान की वाणी को हमारे मोक्ष (कार्य) में निमित्त-कारण कहा गया है इसलिये भगवान और उनकी वाणी के प्रति अपना बहुमान व्यक्त करने के लिये उपचार-से भगवान को मोक्ष (कल्याण) का कर्ता /दाता और संसार रूपी दुःख का हर्ता कह दिया जाता है। प्रवेश : तो क्या ऐसा कहना गलत है ? समकित : नहीं, ऐसा कहना गलत नहीं है लेकिन ऐसा यथार्थ मानना गलत (मिथ्यात्व) है। ऐसा कहना तो भक्ति-मार्ग की एक रीति है। उसकी भी अपनी एक सार्थकता है लेकिन एक सीमा तक। प्रवेश : और द्रव्यत्व गुण..? समकित : आज नहीं कल। 1.pride 2.doer 3.destructor 4.achieve 5.gratitude 6.express 7.formally 8.tradition 9.utility 10.limit