Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ 16 समकित-प्रवेश, भाग-4 समकित : वही जो आचार्यों ने लिखा, जो गणधरों ने बारह अंगों में वर्गीकृत किया, जो भगवान की दिव्य-ध्वनि (वाणी) में आया और जो भगवान के दिव्य केवलज्ञान में जानने में आया। प्रवेश : भगवान के केवलज्ञान में क्या जानने में आया ? समकित : वही जो कुछ विश्व' में है। प्रवेश : विश्व में क्या है ? समकित : विश्व में वस्तुएँ हैं, जिनको हम द्रव्य नाम से भी जानते हैं। प्रवेश : द्रव्य के बारे में विस्तार से बताईये न। समकित : आज नहीं कल। nh द्रव्य-गुण-पर्याय में सारे ब्रह्माण्ड का तत्व आ जाता है। 'प्रत्येक द्रव्य अपने गुणों में रहकर स्वतंत्र रूप से अपनी पर्यायरूप परिणमित होता है', 'पर्याय द्रव्य को पहुँचती है, द्रव्य पर्याय को पहुँचता है': ऐसी-ऐसी सूक्ष्मता को यर्थार्थ रूप से लक्ष में लेने पर मोह कहाँ खड़ा रहेगा? -बहिनश्री के वचनामृत परिणाम (पर्याय) परिणामी (द्रव्य) से भिन्न नहीं है, क्योंकि परिणाम और परिणामी अभिन्न वस्तु है, भिन्न-भिन्न दो नहीं हैं। पर्याय जिसमें से हो उससे वह भिन्न वस्तु नहीं हो सकती। सोना और सोने का गहना दोनों अलग हो सकते हैं ? कदापि नहीं होते। सोने में से अँगूठी की अवस्था हुई, वहाँ अँगूठी रूप अवस्था कहीं रह गई और सोना अन्यत्र कहीं रह गया ऐसा हो सकता है ? कभी नहीं होता...वस्तु (द्रव्य) के बिना अवस्था (पर्याय) नहीं होती और अवस्था के बिना वस्तु नहीं हो सकती। -गुरुदेवश्री के वचनामृत 1.universe 2.objects 3.detail