Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ वीतराग-सर्वज्ञ-सुखी (हितोपदेशी) समकित : पहले व दूसरे पाठ में हमने देखा कि सच्चे सुख को पाने के लिये हमको ऐसे व्यक्तियों की सलाह (उपदेश) की जरुरत है जो राग द्वेष से रहित वीतरागी हों, अज्ञान से रहित सर्वज्ञ हों और दुःख से रहित सुखी हों। अब यह प्रश्न' खड़ा होता है कि ऐसे व्यक्ति कौन हैं ? इसका उत्तर है कि ऐसे अनंत तीर्थंकर भूतकाल मे हुए हैं, ऐसे अनंत तीर्थंकर भविष्य में होगे और ऐसे चौबीस तीर्थंकर वर्तमान में भी इस परम पवित्र भारतीय बसुंधरा पर हुए हैं। जिसमें अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी ने भी पिछले तीर्थंकरों की ही तरह आत्म साधना के बल से वीतरागता, सर्वज्ञता और अनंत सुख को प्राप्त किया और अपनी उस सर्वज्ञता (केवलज्ञान) से विश्व के सभी पदार्थों को एक साथ जान लिया। वास्तव में जान क्या लिया सहजरूप-से उनके जानने में आ गये। जो कुछ भी जानने में आया उसी का अंश सहज रूप से उनकी दिव्य-ध्वनि (वाणी) में भी आ गया। जो कुछ वाणी में आया उसको श्री गौतम स्वामी आदि गणधरों ने बारह अंगो में वर्गीकृत कर दिया जिसे उनके बाद होने वाले आचार्य भगवंतों ने आगम" के रुप में ताडपत्रों पर लिख दिया और उन आगमों का स्पष्टीकरण समय-समय पर होने वाले ज्ञानी-संतों और विद्वानों के माध्यम से होता रहा है जो कि आज हमको जिनवाणी के रूप में हमको प्राप्त है। प्रवेश : जिनवाणी में आखिर है क्या ? 1.question 2.past 3.future 4.present 5.land 6.last 7.substances 8.spontaneously 9.part 10.categorize 11. scriptures 12.palm-leaves 13. clarification 14.medium 15.form