Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 समकित : भगवान हमारी तरह इंसान तो थे, लेकिन साधारण' इंसान नहीं। वे पिछले जन्मों से ही आत्मा की साधना शुरू कर सातिशय पुण्य बाँध कर आये थे। हाँ, आत्म-साधना शुरू करने से पहले वे भी हम जैसे साधारण ही थे। प्रवेश : इसका मतलब हम भी जब आत्मा की साधना शुरू कर देंगे तो विशेष हो जायेंगे? समकित : हाँ बिल्कुल। सभी तीर्थंकर पहले हम जैसे साधारण थे, फिर आत्मा की साधना शुरू कर के विशेष हो गये। प्रवेश : और जन्म कल्याणक ? समकित : जन्म कल्याणक- आज से लगभग 2900 साल पहले काशी (बनारस) के राजा अश्वसेन की पत्नी महारानी वामादेवी के यहाँ पार्श्वकुमार का जन्म हुआ। सौधर्म इंद्र पार्श्वकुमार को सुमेरू पर्वत के पाण्डुक वन की पाण्डुक शिला पर ले गये और वहाँ क्षीरसमुद्र के प्रासुक जल से भरे विशाल कलशों से भगवान का जन्माभिषेक कराया। प्रवेश : इतने छोटे बच्चे का इतने विशाल कलशों से अभिषेक ? समकित : अरे ! भगवान जन्म से ही अतुल्य-बल के धारी होते हैं। कोई उनका बाल भी बाँका नहीं कर सकता। प्रवेश : अरे वाह ! भगवान के आत्म-बल के साथ-साथ उनके पुण्य-उदय से शरीर-बल भी अतुल्य होता है। समकित : हाँ, आत्मा की साधना करने वालों को पुण्य और पुण्य के फल की चाह नहीं रहती लेकिन ये दोनों उनके पीछे-पीछे दौड़ते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! पर माता के गर्भ में आना और जन्म लेना तो कोई अच्छी बात नहीं है। इसी का नाम तो संसार है, फिर इन प्रसंगों को कल्याणक (मांगलिक) क्यों कहा जाता है ? 1.common 2.extra-ordinary 3.special 4.incredible-strength