Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-3 प्रवेश : जी भाईश्री ! समकित : जो चीजें स्वास्थ्य के लिये नुकसानदायक हों, उन्हें अनिष्टकारक अभक्ष्य कहते हैं। चाहे फिर वे भक्ष्य ही क्यों न हो। जैसे शगर के मरीज को एकदम शुद्ध शक्कर और हाई ब्लडप्रेशर के मरीज को एकदम शुद्ध नमक भी अभक्ष्य है। प्रवेश : शुद्ध शक्कर और शुद्ध नमक खाने में तो जीव हिंसा नहीं होती, न ही ये लोकनिंद्य और नशाकारक हैं, फिर क्यों अभक्ष्य हैं ? समकित : अरे भाई, हम स्वयं भी तो जीव हैं। सिर्फ दूसरे जीवों को कष्ट पहुँचाना ही हिंसा नहीं, स्वयं को कष्ट पहुँचाना भी हिंसा है। जो स्वयं की दया नहीं पाल सकता, वो दूसरों की दया क्या पालेगा? ऐसे स्वास्थ्य के लिये हानिकारक (अनिष्ट) पदार्थों के सेवन से स्वयं को कष्ट पहुँचता है, स्वयं की हिंसा होती है। इसलिये ऐसी चीजों का सेवन नहीं करना चाहिये। प्रवेश : आपने बताया था कि जीव को कष्ट शरीर की अवस्था के कारण नहीं, बल्कि अपने मोह, राग-द्वेष के कारण होता है। यदि हमारे मोह, राग-द्वेष खत्म हो जायें तो फिर ऐसी चीजों के सेवन से हमको कष्ट नहीं होगा? समकित : जब हमारे मोह, राग-द्वेष खत्म हो जायेंगे तब हमको ऐसी चीजों के सेवन के भाव ही नहीं आयेंगे। क्योंकि तीव्र राग (कषाय) के कारण ही तो ऐसी चीजों के सेवन के भाव होते हैं जो अपने को और दूसरों को कष्ट पहुँचाती हैं। ऐसे तीव्र राग के कारण इन सभी प्रकार के अभक्ष्य का सेवन करने वाला जीव नरक में जाता है व बहुत कष्ट भोगता है। प्रवेश : ओह !.....भाईश्री व्यसन ? समकित : आज नहीं कल। सब कुछ एक साथ पढ़ लेंगे तो आगे पाठ और पीछे सपाट होता जायेगा। 1.harmful 2.consumption 3.condition