Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ जिनेन्द्र स्तवन वीतराग सर्वज्ञ हितंकर, भविजन की अब पूरो आस / ज्ञान भानु का उदय करो, मम मिथ्यातम का होय विनास / / जीवों की हम करूणा पालें, झूठ वचन नहीं कहें कदा। परधन कबहुँ न हरहुँ स्वामी, ब्रह्मचर्य व्रत रखें सदा / / तृष्णा लोभ न बढ़े हमारा, तोष सुधा नित पिया करें। श्री जिनधर्म हमारा प्यारा, तिस की सेवा किया करें / / दूर भगावें बुरी रीतियाँ, सुखद रीति का करें प्रचार / मेल-मिलाप बढ़ावें हम सब, धर्मोन्नति का करें प्रसार / / सुख-दुख में हम समता धारें, रहें अचल जिमि सदा अटल / न्याय-मार्ग को लेश न त्यागें, वृद्धि करें निज आतमबल / / अष्ट करम जो दुःख हेतु हैं, तिनके क्षय का करें उपाय / नाम आपका जपें निरन्तर, विघ्न शोक सब ही टल जाय / / आतम शुद्ध हमारा होवे, पाप मैल नहिं चढ़े कदा। विद्या की हो उन्नति हम में, धर्म ज्ञान हूँ बढ़े सदा / / हाथ जोड़कर शीश नवावें, तुमको भविजन खड़े-खड़े। यह सब पूरो आस हमारी, चरण शरण में आन पड़ें / / सारांश- यह स्तुति सच्चे देव की है। सच्चा देव उन्हें कहते हैं, जो वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी हो। वीतरागी वह कहलाते हैं जो