Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ इंद्रियाँ प्रवेश : भाईश्री ! कल हमने जिनेन्द्र स्तवन पढ़ा था। भगवान को जिनेन्द्र क्यों कहते हैं ? समकित : क्योंकि वे स्वयं में पूर्णरूप-से' लीन होकर मोह, राग-द्वेष व पाँच-इन्द्रियों के विषयों को भोगने की इच्छा को जीत कर परम सुखी हो गये हैं। प्रवेश : ये पाँच इन्द्रियाँ और उनके विषय क्या हैं ? समकित : पहले हम एक-एक करके पाँच-इन्द्रियों को समझेंगे, फिर उनके विषयों को समझेंगे। प्रवेश : ठीक है, भाईश्री ! समकित : जीव और शरीर के चिन्ह को इन्द्रियाँ कहते हैं। जीव के चिन्ह भाव इन्द्रियाँ और शरीर के चिन्ह द्रव्य-इन्द्रियाँ कहलाती हैं। प्रवेश : मतलब? समकित : जीव का जो ज्ञान स्पर्श', रस, गंध वर्ण", शब्द" को जानता है वह भाव-इन्द्रिय है। त्वचा, जीभ, नाक, आँख, कान आदि शरीर के अंग2 जो जीव को स्पर्श, रस, गंध, वर्ण, शब्द, को जानने में निमित्त हैं उन्हें द्रव्य-इन्द्रियाँ कहते हैं। प्रवेश : इन्द्रियाँ कितनी होती हैं ? समकित : इन्द्रियाँ पाँच होती हैं: 1. स्पर्शन 2. रसना 3. घ्राण 4. चक्षु 5. कर्ण इसको हम इस चार्ट से समझ सकते हैं: 1. completely 2.materialistic-pleasures 3.desires 4.five-senses 5.subjects 6.signs 7.touch 8.taste 9.smell 10.colour 11. sound 12.body-parts 13.formal medium