Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 समकित : हाँ, जब आत्मज्ञानी व्रती श्रावक प्रतिज्ञा' पूर्वक नौ-कोटि से इनका त्याग करते हैं तो उनके लिए यह व्रती श्रावक के अष्ट मूल-गुण कहलाते हैं और हमारे-तुम्हारे लिए कुलाचार या सामान्य जैनाचार कहलाते हैं। प्रवेश : भाईश्री ! तो क्या नेमिनाथ तीर्थंकर के कुल के लोग इस सामान्य जैनाचार को भी नहीं पालते थे? समकित : क्यों ? प्रवेश : हमने सुना है कि उनकी शादी में बारातियों के भोजन के लिए पशुओं को बाँध कर रखा गया था ? समकित : अरे ! कैसी बाते करते हो। तीर्थंकर के कुल के लोग माँसाहारी हो सकते हैं क्या ? पशुओं को राजमार्ग के दोनों तरफ इसलिये बाड़ो में बाँध कर रखा गया था ताकि रास्ता खाली रहे और राजकुमार नेमिनाथ की बारात आसानी से निकल सके क्योंकि गोधूलि वेला (शाम) के समय पशु रास्ते को जाम कर देते थे। प्रवेश : तो फिर वे पशु रो क्यों रहे थे ? समकित : क्योंकि ऐसा करने से बछड़े अपनी माँओं से बिछड़ गये थे। प्रवेश : अच्छा ये बात थी! नेमिनाथ भगवान की कहानी विस्तार से सुनाईये न समकित : आज नहीं कल। जुआ आमिष मदिरा दारी, आखेटक चोरी परनारी। एही सात व्यसन दुखदाई, दुरित मूल दुर्गति के भाई।। -पं. बनारसीदास जी दर्वित ये सातों व्यसन, दुराचार दुखधाम। कुमति की रीति गणिका को रस चखिबो।। भावित अंतर-कल्पना, मृषा मोह परिणाम।। निर्दय है प्राण-घात करबो यहै शिकार। अशुभ में हार शुभ में जीत, यहै द्यूत कर्म। पर-नारी संग पर-बुद्धि को परखिबो।। देह की मगनताई, यहै मांस भखिबो।। प्यार सौं पराई सौंज गहिबे की चाह चोरी। मोह की गहल सों अजान यहै सुरापान। एई सातों व्यसन विडारि ब्रह्म लखिबो।। 1.pledge 2.nine-combinations 3.clan 4.general 5.highway 6.fencing 7.calves