Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 प्रवेश : फिर उन्होंने शादी नहीं की ? समकित : वे करना तो नहीं चाहते थे लेकिन माता-पिता और रिश्तेदारों के सामने उनकी एक न चली। उन्हें मजबूरन शादी के लिए हाँ भरनी पड़ी। प्रवेश : तो फिर उनकी शादी किससे हुई ? समकित : उनकी सगाई' जूनागढ़ की राजकुमारी राजमती (राजुल) से हो गयी थी लेकिन.... प्रवेश : लेकिन ? समकित : लेकिन बारत के समय रास्ते के दोनों ओर बँधे हुए पशुओं का रोना सुनकर उन्हें वैराग्य उमड़ आया और आत्मज्ञानी राजकुमार नेमिनाथ ने मुनि दीक्षा लेने का निर्णय कर लिया व गिरनार पर्वत की ओर चल दिये। प्रवेश : उनको किसी ने रोका नहीं ? समकित : महापुरुष एक बार जिस रास्ते पर चलने का निर्णय कर लेते हैं फिर किसी के रोके नहीं रुकते। गिरनार पर्वत के वन में जाकर समस्त अंतरंग-बहिरंग परिग्रह का त्यागकर उन्होंने जिन दीक्षा धारण कर ली और आत्मध्यान में मग्न हो गये। प्रवेश : अरे बेचारी राजुल का क्या हाल हुआ होगा? समकित : राजुल बेचारी नहीं थी। नेमिनाथ की तरह वह भी आत्मज्ञानी थी। इस घटना को देख कर उनको भी संसार-शरीर-भोगों से वैराग्य हो गया और उन्होंने भी गिरनार पर्वत की एक गुफा में जाकर दीक्षा धारण कर ली और आत्म-ध्यान में लीन हो गयीं। प्रवेश : यह ठीक रहा। वे भी नेमिनाथ के साथ उनके ही मार्ग पर चली गयीं। 1.engagement 2.Gir-hills 3.Decision 4.jungle 5.self-meditation