Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 प्रवेश : परिग्रह कितने प्रकार के होते हैं ? समकित : परिग्रह दो प्रकार के होते हैं : 1. अंतरंग परिग्रह' 2. बहिरंग परिग्रह मिथ्यात्व और कषाय अंतरंग परिग्रह हैं और जमीन-मकान, सोना-चाँदी आदि बहिरंग परिग्रह हैं। अंतरंग परिग्रह छूटे बिना बहिरंग परिग्रह सही मायनों में नहीं छूट सकते। प्रवेश : भाईश्री ! अंतरंग परिग्रह में भी सबसे पहला नंबर तो मिथ्यात्व का है। अब मैं सबसे पहले मिथ्यात्व को छोड़ने की कोशिश करूँगा। समकित : प्रवेश तुम बाते तो बहुत बड़ी-बड़ी करते हो लेकिन कल बाजार में अंजीर शेक पी रहे थे। तुम्हारा ऐसा आचरण देखकर ही लोग कहने लगते हैं कि आत्मा-परमात्मा की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले सामान्य जैनाचार भी नहीं पालते। प्रवेश : भाईश्री ! यह जैनाचार क्या होता है ? समकित : जैन कुल में पैदा होकर भी जैनाचार नहीं जानते। यह तो हमारा कुलाचार है। ठीक है कल बताता हूँ। परिग्रह की मूर्छा पाप का मूल है। नीति के विधान पर पैर नहीं रखना। -श्रीमद् राजचन्द्र वचनामृत नीति वह वस्त्रों के समान है और धर्म वह गहनों के समान है। जिस प्रकार बिना वस्त्रों के गहने शोभा नहीं देते, उसी प्रकार बिना नीति के धर्म शोभायमान नहीं होता। -गुरुदेवश्री के वचनामृत 1.internal possessions 2.external possessions 3.real sense 4.fig 5.conduct 6.general 7.custom