Book Title: Samkit Pravesh - Jain Siddhanto ki Sugam Vivechana
Author(s): Mangalvardhini Punit Jain
Publisher: Mangalvardhini Foundation
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________________ समकित-प्रवेश, भाग-2 27 जब जीव मनुष्य गति का शरीर छोड़कर तिर्यंच गति के शरीर में चला जाता है तब तिर्यंच कहलाने लगता है और जब तिर्यंच गति का शरीर छोड़कर मनुष्य गति के शरीर में चला जाता है तब मनुष्य कहलाने लगता है। प्रवेश : इसका मतलब वो किसी भी गति के शरीर में जाये. कछ भी कहलाये असल में रहता वह जीव (आत्मा) ही है। समकित : हाँ, बिल्कुल सही समझे। प्रवेश : हम सब मनुष्य गति में है, पशु-पक्षी आदि तिर्यंच गति में हैं। फिर नारकी और देव ? समकित : जो मनुष्य या तिर्यंच गति का शरीर छोड़कर नरक गति के शरीर में जन्म लेते हैं, उन्हें नारकी कहते हैं व जो देव गति के शरीर में जन्म लेते हैं उन्हें देव कहते हैं। प्रवेश : सुना है कि नरक में तो बहुत दुःख सहने पड़ते हैं ? समकित : नरक क्या, चारों गतियों में दुःख ही दुःख हैं। हाँ, इतना जरुर है कि नरक में सबसे ज्यादा हैं। प्रवेश : नरक में सबसे ज्यादा दुःख क्यों हैं ? समकित : क्योंकि वहाँ के जीव (नारकी) बहुत तीव्र' कषाय (क्रोध आदि) वाले हैं और वहाँ का वातावरण भी बहुत ही भयानक है। शरीर को जला देने वाली भयंकर गर्मी और शरीर को गला देने बाली भयंकर सर्दी वहाँ पड़ती है। खाने को भोजन नहीं, पीने को पानी नहीं। जबकि कषाय (इच्छा) ज्यादा होने के कारण भूख-प्यास बहुत तेज लगती है। हमेंशा मार-काट मची रहती है। तीव्र कषाय के कारण नारकी जीव आपस में लड़ते रहते हैं। प्रवेश : इसका मतलब है नरक में जीव अपनी कषायों के कारण ही दुःखी हैं ? 1.intense 2.terrible