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यादि प्रासादों का निरूपण किया गया है। प्रयोगात्मक दृष्टि से यह विषय अत्यधिक विहार की प्राप्य शे गया था। यहां तक कि मेरा प्रसाद में ५०१ गाए जाते थे। वृषभध्वज नामक मेर में एक राह क कहे गये हैं। मेरु प्रासाद बहु व्यय साध्य होने से केवल राजकीय निर्माण का
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गए है । १२ स्तम्भों ने
७ वें अध्यायों के निर्माण की विधि दी गई है। १० हाथ से ५० क के समया साद मण्डप बनाए जाते थे। जैन मन्दिरों में मण्डप, चौकी, नृत्यमय उन तीनो मण्डपों का होना आवश्यक माना गया है। मण्डप के कार की छत घण्टा कहलानी भी जिसे हिन्दी में गूमद कहते हैं। इसके ऊपर के भाग को संरा और नीचे के भाग को बितान कहते थे। मंडप के निर्माण में स्तम्भों का विशेषतः विधान किया गया है । ८८ १२ या २० कोने तक के स्तम्भ गाव म् बनाए जाते थे । स्तम्भों को के भेद से २७ प्रकार के मण्डप की वृद्धि करते हुए ६४ स्तम्भों तक के मण्डपों का उल्लेख है। विद्याधर नर्तकी, गजतालु को याद fafar faarai के निर्माण में भारतीय सियाचायों ने अपने कौशल का पfree from a एक हजार एक सौ तेरह प्रकार के वितान कहे गये हैं। मट के ऊपरी घण्टी का कर मुख्य या । न्यूनातिन्यून पांच घंटियों से लेकर पटियों तक की गिनती की जाती थी।
मटकी के वितान को प गुशोभित किया जाए
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भाग या संवरगा के भजावद में की
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श्रध्याय में मंदिरों के एवं बाकुड़गादि के जीगार की विधि कही गई है। साथ ह राजपुर आदि नगरों के निर्माण को सोच, जापवाक्ष, कोति स्वम्म जनामादि ने मृगोभित कर
नभाया है। इसी प्रकार कोष्ठागार, मलवारसी, महानस कुणाचा प्राधानादागार जनस्वा विद्या भण्डप व्याख्यान मण्डप मादि के निर्माण का विधान भी किया गया है। इस प्रकार चार मण्डन ने अपने वास्तुसार संबन्धी इस ग्रंथ में संक्षिप्त जी द्वारा प्रायाद रचना संधि विस्तृत जानकारी भरत का प्रयत्न किया है। इस ग्रंथ का पहन-पान में अधिक प्रचार होना उचित है।
श्री पं. भगवानदास जैन ने मनुवाद और विश्रमय व्याख्या के द्वारा इस ग्रंथ को सुलभ बनाने का जो प्रयत्न किया है इसके लिए हमें उनका उपकार मानना चाहिए। व्यक्तिगत रीति में हम उनके और भी भारी हैं. क्योंकि याज से कई वर्ष पूर्व जयपुर में रहकर उनसे इस ग्रंथ के साक्षात् अध्ययन का पवसर प्राप्त हुआ था। विदित हुआ है कि इस ग्रन्थ का हिन्दी भाषान्तर भी प्रकाशित करना चाहते है । घाशी है उस संस्करण में विषय को स्पष्ट करने वाले रेखाचित्रों की संख्या में और भी वृद्धि संभव होगी।
ता० १-१-६२
बासुदेवशरण अग्रवाल विभाग
अध्यक्ष-कला बारेतु काशी विश्व विद्यालय