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प्रासादमण्डने
वास्तु पूजन के बत्तीस मंचलों में से इक्यासीपद का और चौसठ पद का, ये दो मंडल पूजने चाहिये ॥१०२।। वास्तुपुरुष के ४५ देव
ईशो मूर्धनि पर्जन्यो दक्षिणकर्णमाश्रितः ।
जयः स्कन्धे महेन्द्राद्याः पञ्च दक्षिणबाहुगाः ॥१०३॥ 'महेन्द्रादित्यसत्याश्च भृश अाकाशमेव च ।
बास्तुपुरुष चक्र--
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वास्तुपुरुष के मस्तक पर ईश देव, दाहिने कान पर पर्जन्यदेव, दाहिने स्कंध पर जयदेव और दाहिनी भुजा पर इन्द्र मादि पांच-इन्द्र, सूर्य, सस्य भृश और आकाश देव स्थित हैं ।।१०३||
वह्निर्जानुनि पुषाद्याः सप्त पादनलीस्थिताः ॥१०४॥ *विशेष जानने के लिये देखें राजबल्लभ मडम अध्याय २. १. 'महेन्द्रः सूर्यः सत्यश्च ।'
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