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भय जिनेन्द्रप्रासादाध्यायः
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कर्णिकायां ततः शृङ्ग-मष्टौ प्रत्यङ्गानि च । भद्रे चैवोरुचत्वारि प्रासादः पार्थवल्लभः ॥११॥
इति श्री पाववल्लभप्रासाद ॥५३॥ प्रासाद की समवोरस भूमिका छव्वीस भाग करें। उन में चार भाग का कोरण, एक भाग को कोरणी, तीन भाग का प्रतिरथ, एक भाग की नन्दी और भद्रार्ध चार भाग का रखें ! कोण पौर प्ररथ के ऊपर एक एक केसरीक्रम और एक एक श्रीवत्सग चढ़ावें । कोणी और नन्दी के ऊपर एक एक शृग चढावें । पाठ प्रत्यक्ष और भद्र के ऊपर चार चार उरुग चढावें । ऐसा पार्श्वनाथबल्लभ नाम का प्रासाद है ॥११६ से ११८॥
शृङ्ग संख्या-कोरणे २४, प्ररथे ४८, मद्रे १६ कोणी पर ८, नंदी पर , प्रत्यंग ८, एक शिखर कुल ११३ शृंग। ५४-पद्मावतीप्रासाद--
कर्णे च तिलकं दद्यात् प्रासादस्तत्स्वरूपः । पमावती च नामेति प्रासादो देवीवल्लभः ॥११॥
इति पचायतीप्रासादः ॥५४॥ पाचवल्लभ प्रासाद के कोरणे के ऊपर एक एक तिलक भी चढाये तो पद्मावती नामका प्रासाद होता है। यह देवी को प्रिय है ॥११॥
भृग संख्या पूर्ववत् ११३ । तिलक ४ कोरसे के पर। ५५-रूपवल्लभप्रासाद ----
तद्रपं च प्रकर्तव्यं प्रतिकणे कर्णसारशम् । जिनेन्द्रायतनं चैव प्रासादो रूपवल्लभः ॥१२०॥
इति रूपवल्लभासादः ||५५३ पद्मावती प्रासाद के प्ररथ के ऊपर भी एक एक तिलक 2 चढावे तो रूपवल्लभनामका जिनेन्द्रप्रसाद होता है ॥१२०॥ शृंग संख्या-पूर्ववत् ११३ । तिलक १२ : चार कोणे और पाठ प्ररथे । प्रा०२७
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