Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 257
________________ प्रासादमकने संख्याको ५६, कोणीवर ८ प्ररथे ४०, कोलोवर, उपरमे ४०, नंदी पर, भद्र १६. प्रत्यंग १६, एक शिखर कुल १०३ श्रृंग | तिलक संख्या-- प्रत्ये उपर कनंदी पर ८, प्ररथनंदी पर प, भद्रनंदी पर कुल ४० तिलक । 5, २.०८ ५१ - यतिभूषणप्रासाद----- तत्तुल्यं तत्प्रभा च रथे शृङ्ग ं च दापयेत् । वल्लभः सर्वदेवानां प्रसादो यतिभूषणः ॥ ११४ ॥ इति यतिभूषणप्रासादः ॥५१॥ नेमेश्वर प्रासाद के प्ररथ और उपरथ ऊपर के तिलक के बदले एक एक बढाने से पतिभूषरण नाम का प्रासाद होता है, वह सब देवों को प्रिय है ।। ११४॥ श्रृंगसंख्या प्रथे ४८ उपरथे ४८ बाकी पूर्ववत् कुल २०६ श्रृंग । तिलक कुल २४ तीनों नन्दी पर ५२ - सुपुष्पप्रासाद - तद्रूपं तत्प्रमाणं च रथे दद्याच्च केसरीम् । सुपुष्पो नाम विज्ञेयः प्रासादः सुरवल्लभः ॥ ११५ ॥ इति सुपुब्वनामप्रासादः ॥५२॥ | यतिभूषण प्रासाद के प्ररथ और उपरण ऊपर के श्रृंग के बदले में एक एक केसरी कम चढ़ाने से सुर नामका प्रासाद होता है। वह देवों को प्रिय है || १०५॥ चंग संस्था-परचे ८०, ऊपरथे ८० बाकी पूर्ववत कुल २७३ । तिलक २४ पूर्ववत् विभक्ति तेईसवीं । ५३ -- पार्श्व वल्लभप्रासाद चतुरस्रीकृते क्षेत्रे 'षडविंशपदमा जिते । कर्णा गर्भस्र्यन्तं विभागानां तु लक्षणम् ॥ ११६ ॥ वेदरूपगुणेन्दवो भद्राक्षं तु चतुष्पदम् । श्रीari hai चैत्र रथे कर्णे च दापयेत् ॥ ११७ ॥ १. 'प्रविशति भाजिते । पाठान्तरे । २. 'द्वय' ।

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