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इस ग्रंथ में आये हुये शब्दों का सार्थ अकारादि क्रम ।
अर्कतनया स्त्री, यमुना देवी। अंश प. विभाग, खंड।
अर्चन न, पूजा। अग्नतनन, कार.का भाय ।
प्रर्चा स्त्री. देवमूति । अघोर पु. उपरथ नाम के घर का देव
अर्धचन्द्र पु. प्रासाद की येहली के पाये को गोल प्रम. नपकी संख्या, विङ्ग ।
आकृति, शंम्हावटी, मंडल विशेष, अङ्कित वि०पित किया हुपा।
अर्यमन् पु. वास्तदेव, सर्म, जस्सएकागनी नमन । अङ्गल न. ईच, मांगल।
अलिन्द पु. वरामदा, दालान । अध्रि पु. पैर, धरण, धतुपास।।
अवलम्ब पु. पोलमा, रस्सी के बंधा हुआ मोहे का छोटा प्रविता स्त्री मौकी पांचवी शिला का नाम ।
सा लट्, जिसको शिल्पिवर्ग मांध काम करते प्रनिता स्त्री गर्भरहो मागेाग के मान को कोलो समय अपने पास रखता है। कानाम |
अव्यक्त कि, अप्रकाशित, अंधकार मय, अघटित अएक म. पुन, शिक्षर, प्रामलसार, कलय का
शिवलिंग। पेट, मा
अश्वमेध पु. विशेष का नाम । अदिति पु.तु देखा का नाम ।
प्रदत्थ पु. ब्रहापोपला, पीपल । पति पु. पर्वत, सात की संख्या अधिष्ठान न.भाभार, गती
अश्विन् पु. अश्विनीकुमारदेव, मरचन्द्र के देव
अष्टादश वि. प्रकारह की संस्था । अनन्त पु. व्यासाई के माग के उपयवाला गुबग ।
अमापद.चारों दिशामें माठमाठ सोडीयाला पर्वत । अनिल पु. वायु, वास्तुदेव।
अष्टानक पु. माह कोना वाला संभ मग पु. पारा, कोने के समीप का दूसरा कीमा। अन्तरपान.कलश और केवाल ये होमों परों के बीच
असुर पु. वास्तु देव ।
प्रस पु. कोना, हद। मन्सर अन्तराल ल. देखो मतपत्र, पन्तर अन्धकारिका स्त्री. परिक्रमा, प्रदबिश
प्राकाश न. वास्तुदेव, गुंबन का देव । अधारिफा स्त्री. देखो ऊपर का शब्द ।
प्रागार न. देशलय, घर, स्थान । अपराजित ने, सूत्रसंतान गुणकीति का रवा मा प्रादित्य पु. वास्तुदेव, सूर्य । वास्तुशिल्प का हा ग्रंथ ।
बाद्यसूत्रधार पु. विश्वकर्मा । अपराजिता स्त्री. नींव की छठी शिला का नाम । पाप पु. वास्तुदेव, पानी। अमृतोद्भव पु. केसरी जाति का पाठ प्रासाद । प्रापवत्स पु. बास्तुदेव । अभिषेक पु. देवों का मंत्र पूर्वक स्मान ।
ग्रामलसार पु. शिखर के स्कंध के ऊपर कुमार के प्रम्बर . शिरको ग्रोवाका देव ।
चाक अंसा गोल कलश प्रयुतान, दस हजार की संरूपा।
मामलसारिका स्त्री. प्रामससार के कार को चंद्रिका मर्क पु. सूर्य, बारह की संख्या ।
के कार की गोल प्राकृति !
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