________________
INTER2008
प्रासादमडने
नगर, ग्राम मोर पुरके मध्य में जगती और मंडप वाले ऋषभ प्रादि जिनप्रासाद पृथ्वीतल में किया जाता है । जिसे स्वर्ग और पृथ्वी में राज्य प्राप्ति सुलभ होती है ॥१२० से १३१॥
दक्षिणोतरमुखाश्च प्राचीपश्चिमदिङ्मुखाः। वीतरागस्य प्रासादाः पुरमध्ये सुखावहाः ॥१३२॥ इति श्री विश्वकर्मकृतज्ञानप्रकाशदीपार्णवे वास्तुविद्यायां
जयपृच्छता जिनप्रासादाधिकारः समाप्तः ॥ दक्षिण, उत्तर, पूर्व और पश्चिम, इन चारों दिशा के मुख वाले वीतराग देव के प्रासाद नगर में हो तो सुख कारक हैं ।।१३२।।
इति पं० भगवानदास जैन कृत शानप्रकाशदीपार्णव के वास्तुविद्या के जिनप्रासादाधिकार की सुबोधिनी माम्नी
भाषादीका समाप्ता ।