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( २१६ ) पञ्चगव्य न. पाय का दूध, दही, घी, मूत्र और गोबर। पिशाच पु. क्षेत्रमरिणत के प्राय और व्यय दोनों बराबर पञ्चविंशत् सं पैतीस की संख्या ।।
जानने की संज्ञा । पञ्चदेव पु. ब्रह्मा, विष्णु, सूर्य ईश्वर और सवासिष पीठ म. प्रासाद को खुरसी, मासन ।
ये पांच देवों का समूहजाग के देव । पीलीपीछ। स्त्री. वास्तुचक के ईशान कोण की देवी । पश्चात् सं. पचास की संख्या ।
पुनर्वस पु. माला नक्षत्र । पट्ट पु. पाचारण का पाट ।
पुरन. गांध, शहर। पट्टभूमिका स्त्री. अपर को मुख्य खुली छत ।
पुरा न. पठारह की संज्ञा पशाला स्त्री, दलामा, रामा ।
पुरुष दु. प्रासाद का जीव, जो सुवर्ण का पुरुष बनाकर पताका स्त्री. १
मामलसार में पलंग पर रखा जाता है। पत्रशाखा स्त्री. द्वार की प्रथम शाखा का नाम ! पुष , वास्तुदेव। पद न. भाग, हिस्सा
पुष्पकठपु, दाता, अंतराल । पनकपु. समतल छत ।
पुष्कर न. जलाश्रय का मंडप, बलाक ! गयकोश पु..
रमाकार।
पुष्पमेह न. पूजनगृह । पद्मपत्र न. पत्तियों के प्राकार धामा थर, दासा ।
पुष्पदन्त पू. वास्तुदेव । पहराग पु, केसरी जाति का १८ यो प्रासाद | पुष्पराग न, पुखराज, रल विशेष । पशिला स्त्री. गुम्बज के कर की मध्यशिला, यह पुष्पिका रू. गुम्बद क पर बना
पुष्पिका स्त्री. गुम्बद के पर बनी हुई प्रथम संघरहा। नीचे लटकती दिखती है।
पुष्य न. पाठया नक्षत्र । पद्मा स्त्री. पद्मशिला, ग्यारहवीं संवरगा।
पूतना स्त्री. वास्तुचक्र के नरक कोण को देवी । साक्ष पु. पापण (वासा) के देव ।
पृथिवीजय पु. केसरी जाति का बारहवां प्रासाद । पधिनी लौ नवशाखापालाद्वार।
पुषिधोधर पु. पास्तुदेव । पबासन न. वेब के बैठने का स्थान, पीठिका है
पृथु वि. विस्तार, चौड़ाई। पर्जन्य पु. वास्तुदेव, ध्वजा का देव।
पेट । न. पाट मादि के नीचे का साल । पर्यपु. पलंग, खाट ।
पेटक पर्वन् म. खादंड की दो चूडी का मध्य भाग ।
पौरपु. दूसरा व्यय का काम। पर्वत पु. स्तंभ का देव। .
पौरुष पु. प्रासाद पुरुष संबंध की विधि । पत्य . पलंग, खाट ।
पौली स्त्री. प्रासाद को पोल के भोरे भीट्ट का पर। पाद पु, शरण, चौथा भाग)
पौष्ण्यम, २७ वा रेवती ममत्र। पापराक्षसी स्त्री, वास्तुचक्र के बायु कोलाकी देवी ।
प्रणाल न. पानी निकलने की नाली, परनाला । पार्वती स्त्री. कलश के देध ।
प्रतिवर्ण म.कोम के समीप का दूसरा कोना। पाव पु. न, एक तरफ, प्रभीष ।
प्रतिभद्र न. मुखभद्र के दोनों तरफ के खांचे। पासवमाछत्रा के ऊपर छाय का एक पर।
प्रतिरथकोनेके समीप का चौथा कोमा। पि वि. जमाई, मोटाई।
प्रतिष्ठा स्त्री. देवस्थापन विधि पितामह पु. ब्रह्मा।
प्रतोली स्त्री. पोल, प्रासादादि के मागे तोरणमा पित पु, वास्तुदेव, पूर्वज, पितर देव ।
दो संभ। जिपति पु. यम, दक्षिण दिशा का विक्पाल । प्रत्यङ्गन, शिखर के कोनेके दोनों सरक संथा पिपल पु. लक्ष, पाकर, पिलखन ।
चतुपाश मानका ।