Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 255
________________ २०६ विभक्ति इक्कीसवों B सामने ४७- सुमतिकीर्तिप्रासाद -- षड्विंशपदभाजिते । चतुस्रीकृते क्षेत्रे कर्णो भागाश्च चत्वारः प्रतिकर्णस्तथैव च ॥ १०४ ॥ भर्दिव्यथितम् । कर्णे क्रमश्रयं कार्य प्रतिकर्णे क्रमद्वयम् ॥१०५॥ द्वादशैवोरुशृङ्गाणि प्रत्यङ्गानि द्वात्रिंशकम् । मन्दिरं प्रथमं कर्म सर्वतोभद्रमेव च ॥१०६ ॥ केसरीं तृतीयं कर्म ऊर्ध्वे मञ्जरी शोभिता । सुमविकीत्तिनामोऽयं नमिनाथस्य वल्लमः ॥ १०५ ॥ इति नमिजिनवल्लभः सुमतिकीतिप्रासादः ॥४७॥ प्रासाद की समोरस भूमिका छब्बीस भाग करें। उनमें चार भाग का कोण पार भाग का प्रश्य और दस भाग का पूरा भद्र करें। कोणे के ऊपर तीन क्रम प्ररथ के ऊपर कम, भद्र के ऊपर कुल बारह उरुग और बत्तीस प्रत्यंग चढायें | उसके ऊपर शिखर शोभायमान करें, ऐसा सुमतिकीति नामका प्रासाद श्रीनमिनाथ जिनको भय है ।। १०४ से १०७ ।। श्रृंग । श्रृंगसंख्या -कोर १५६, ११२ भद्रे १२ प्रत्यंग ३२, एक शिखर, कुल ३१३ श्रृग । यदि प्रश्थ ऊपर मंदिर और सर्वतोभद्र वे दो कम रखा जाय तो श्रृंगसंख्याकोणे १५६, प्र१ये २७२, भद्र १२, प्रत्यंग ३२, एक शिखर, कुल ४७३ श्रृंग । ४८- सुरेन्द्रप्रासाद- तद्रूपे च प्रकर्तव्यो रथे शृङ्गं च दापयेत् । सुरेन्द्र इति नामायं प्रासादः सुखल्लमः || १०८|| इति सुरेन्द्रनामप्रासादः ॥४८॥ सुमतिकति प्रासाद के प्ररथके ऊपर एक शृंग अधिक चढ़ावे ती सुरेन्द्र नामका प्रासाद होता है. वह देवों को प्रिय है || १०८ ॥ संख्याको १५६, र २८०, भद्र १२, प्रत्यंग ३२, एक शिखर कुल ४८१

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