Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

View full book text
Previous | Next

Page 253
________________ २०४ प्रासादमारने ४१-मानवेन्द्र प्रासादरथोचे तिलकं दद्यान्मानवेन्द्रोऽथ नामतः। इति मानवेन्द्र प्रासादः ॥४१॥ महेन्द्रप्रासाद के प्रति रथ के ऊपर एक २ तिलक भी चढ़ा तो मानवेन्द्र नामका प्रासाद होता है । शृंगसंख्या पूर्ववत् १८१ प्रौर तिलक ८ प्ररये । Essam ४२--पापनाशनप्रासादकर्णोधे तिलकं दधात् प्रासादः पापनाशनः ॥६६॥ इति पापनाशनप्रासादः ।।४।। नाममा के कोर एक २ तिलक भी बढ़ावें तो पापनाशन नामका प्रासाद होता है ।।६।। शृगसंख्या पूर्ववत् १८१ । तिलक-कोरणे ४, और प्ररथे ८ कुल १२ तिलक । विभक्ति बोसवीं । ४३-मानसतुष्टि नामका मुनिसुव्रतमासाद चतुवीकृते क्षेत्रे चतुर्दशविभाजिते । बाहुवयं रथं कर्ण भद्रा पभागिकम् ||१७|| श्रीवत्सं केसरी देयं कर्णे रथे क्रमद्वयम् । द्वादशैवोस्पृङ्गाणि स्थापयेच चतुर्दिशि ॥६॥ मानसतुष्टिनामोऽयं प्रासादो मुनिसुव्रतः । इति मानसतुष्टि नाम मुनिसुव्रतप्रासादः ॥४३।। प्रासाद को समचौरस भूमिका चौदह भाग करें। उनमें दो भागका कोश, दो भागका प्ररथ और तीन भागका भद्राई करें । कोरण और प्ररथ के पर केसरी मौर श्रीवत्स ये दो कम चढ़ावें । तथा भद्र के ऊपर कुल बारह उरुग चढ़ावें । ऐसा मानसतुष्टि नामका मुनिसुव्रत प्रासाद है ।।६७-६८॥ श्रृंगसंख्या--कोरणे २४, प्ररथे ४८, भद्रे १२, एक शिखर, कुल ८५ शृंग। ४४-मनोल्याचन्द्र प्रासाद__ तद्रूपे रथे तिलकं मनोन्याचन्द्रो नामतः ॥६६॥ इति मनोल्याचन्द्रप्रासादः ॥४४||

Loading...

Page Navigation
1 ... 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277