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प्रासादमारने
४१-मानवेन्द्र प्रासादरथोचे तिलकं दद्यान्मानवेन्द्रोऽथ नामतः।
इति मानवेन्द्र प्रासादः ॥४१॥ महेन्द्रप्रासाद के प्रति रथ के ऊपर एक २ तिलक भी चढ़ा तो मानवेन्द्र नामका प्रासाद होता है । शृंगसंख्या पूर्ववत् १८१ प्रौर तिलक ८ प्ररये ।
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४२--पापनाशनप्रासादकर्णोधे तिलकं दधात् प्रासादः पापनाशनः ॥६६॥
इति पापनाशनप्रासादः ।।४।। नाममा के
कोर एक २ तिलक भी बढ़ावें तो पापनाशन नामका प्रासाद होता है ।।६।। शृगसंख्या पूर्ववत् १८१ । तिलक-कोरणे ४, और प्ररथे ८ कुल १२ तिलक ।
विभक्ति बोसवीं । ४३-मानसतुष्टि नामका मुनिसुव्रतमासाद
चतुवीकृते क्षेत्रे चतुर्दशविभाजिते । बाहुवयं रथं कर्ण भद्रा पभागिकम् ||१७|| श्रीवत्सं केसरी देयं कर्णे रथे क्रमद्वयम् । द्वादशैवोस्पृङ्गाणि स्थापयेच चतुर्दिशि ॥६॥ मानसतुष्टिनामोऽयं प्रासादो मुनिसुव्रतः ।
इति मानसतुष्टि नाम मुनिसुव्रतप्रासादः ॥४३।। प्रासाद को समचौरस भूमिका चौदह भाग करें। उनमें दो भागका कोश, दो भागका प्ररथ और तीन भागका भद्राई करें । कोरण और प्ररथ के पर केसरी मौर श्रीवत्स ये दो कम चढ़ावें । तथा भद्र के ऊपर कुल बारह उरुग चढ़ावें । ऐसा मानसतुष्टि नामका मुनिसुव्रत प्रासाद है ।।६७-६८॥
श्रृंगसंख्या--कोरणे २४, प्ररथे ४८, भद्रे १२, एक शिखर, कुल ८५ शृंग। ४४-मनोल्याचन्द्र प्रासाद__ तद्रूपे रथे तिलकं मनोन्याचन्द्रो नामतः ॥६६॥
इति मनोल्याचन्द्रप्रासादः ॥४४||