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प्रासादमण्डने
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३५-हर्षणप्रासादकोंचे शृङ्ग दातव्यं प्रासादो हर्षणस्तथा ।
इति हर्षणप्रासादः ॥१३॥ शक्तिद प्रासाद के कोरणे के ऊपर एक २ शृंग अधिक बढ़ाने से हर्षण नामका प्रासाद होता है।
शृंगसंख्या--कोणे २४, रथे ४०, भद्रे ४, एक शिखर, कुल ६६ श्रृंग तिलक पूर्ववत् २८ । ३६-भूषणप्रासादकोषे तिलक या प्रासादो भूपणस्तथा ॥८॥
___ इति भूषणप्रासादः ॥३६॥ हर्षणप्रासाद के कोरणे के ऊपर एक तिलक अधिक चढ़ाये तो भूषण नामका प्रसाद होता है ||८८ शृंगसंख्या-पूर्ववत् ६६ और तिलक ३२॥
विभक्ति अठारहवीं । ३७-अरनायजिनवल्लभ-कमलकन्दप्रासाद
चतुरस्त्रीकते क्षेत्रे चाष्टभागविभाजिते । कर्णो द्विभागिको वे यो भद्रा व द्विमागिकम् ॥८६॥ कर्णे च शृङ्गमेकं तु केसरी च विधीयते । भद्रे चैवोद्गमः कार्यों जिनेन्द्रे चारनाथके ।।६०|| इति त्वं विद्धि भो यत्स ! प्रासादो जिनयन्लभः । कमलकन्दनामोऽयं जिनशासनमार्गतः ॥११॥
इति अरनाथ जिनवालभः कमलकन्दप्रासादः ।।३७॥ प्रासाद की समचोरस भूमिका पाठ भाग करें। उनमें दो भाग का कोण और दो भाग का भद्रार्ध रनावें। कोणे के ऊपर एक २ केसरी शृंग चढावें और भद्र के ऊपर उद्म बनावें । ऐसा अरनाथ जिन के लिये कमलकन्द नाम का प्रासाद हे यत्स ! तू जान IEE से ६१॥
शृङ्गसंख्या-कोरणे २०, एक शिखर, कुल २१ शृंग।