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श्रथ जिनेन्द्रप्रासादाध्यायः
विभक्ति सत्रहवीं ।
३३- कु· युजिनवल्लभ कुमुदप्रासाद---
चतुरस्रीकृते क्षेत्रे कर्णः स्यादेकभins
after a भगा निर्गमं पद्मानेन
प्रा० २६
चाष्टभागविभाजिते ।
प्रतिकर्णस्तथैव च ॥ ८३ ॥
त्रिपदं मद्रविस्तरम् । स्थापयेश्च चतुर्दिशि || ८४ ॥
कर्णे च केसरी दद्यात् तदर्थे तिलकं न्यसेत् । तत्सदृशं प्रतिकर्णे नन्द्यां तु तिलकं न्यसेत् ||५|| भद्रे च श्रृंगमेकं तु कुमुदो नाम नामतः । वल्लभः सर्वदेवानां जिनेन्द्रकु थुवन्लभः ||८६ ॥
इति कुंथुनाथयल्लभः कुमुदप्रासादः ||३३||
प्रासाद की समत्रोरस भूमिका पाठ भाग करें। उनमें कोण और प्रतिक एक एक भाग का, भद्रार्ध देव भाग और भद्रनन्दो यात्रा भाग बनायें । भद्र का निर्गम एक भाग रक्खें, इस प्रकार चारों दिशा में व्यवस्था करें। कोण और प्रतिक के ऊपर एक एक केसरी
'ग और उसके ऊपर एक एक तिलक चढावें । भद्रनंदो के ऊपर तिलक और भद्र के ऊपर एक उरुशृंग चढावें । यह कुretreat प्रासाद सर्वदेवों को और कुंथुजिनदेव को वल्लभ है ||८३ से ८६ ॥
संख्याको २०, प्रर ४०, भने ४, एक शिखर, कुल ६५ । तिलक संख्याकोशी ४, प्रये, और नदी पर कुल २० तिलक |
३४ - शक्तिदप्रासाद----
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पंच प्रकर्तव्यं रथे तिलकं दापयेत् ।
शक्तिदो नाम विशेयः श्रीदेवीषु सुखावहः ||८७ll
इति शक्तिदप्रासादः ||३४|
कुमुदप्रासाद के प्ररथ के ऊपर एक २ तिलक अधिक चढ़ाने से शक्ति नाम का प्रशसाद होता है। वह लक्ष्मीदेवी को सुखकारक है ||८||
संख्या- पूर्ववत् ६५ और तिलक को ४, प्ररथे १६. नंदी पर 5 कुल २८ ।