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अथ जिनेन्द्रप्रासादाध्यायः
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३८-श्रीशैलप्रासादकणे च तिलकं ज्ञेयं श्रीशैल ईश्वरप्रियः ।।
इति श्रीशैलप्रासादः ॥३८॥ कमलकन्द प्रासाद के कोणे के ऊपर एक २ तिलक भी बढ़ाने से श्रीशैल नाम का प्रासाद होता है, वह ईश्वर को जिय है।
मुंगसंख्या-पूर्ववत् २१ और तिलक ४ को । ३६-अरिनाशन प्रासादभद्रे चैवोरुचत्वारि प्रासादस्त्वरिनाशनः ॥६२||
इत्परिनाशनप्रासादः ॥३६॥ श्रीशैलप्रासाद के भद्र के ऊपर एक २ अरुQग चढ़ाने से मरिनाशन नामका प्रासाद होता है ॥२॥ शृगसंख्या-कोरण २०, भद्रे ४, एक शिखर, कुल २५ शृंग और तिलक ४ कोणे ।
विभक्ति उन्नीसवीं। . ४०-श्रीमल्लिजिनवल्लभ-महेन्द्रप्रासाद---
चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे द्वादशपदभाजिते । कर्थो भागद्वयं कार्यः प्रतिस्थश्च साधे : १६३॥ सार्धभागकं भद्रा चार्धा नन्दीद्वयं भवेत् । करें क्रमद्वयं कार्य प्रतिस्थे तथैव च ॥४॥ द्वादश उरुङ्गाणि स्थापयेच्च चतुर्दिशि । महेन्द्रनामः प्रासादो जिनेन्द्रमन्लिबल्लभः ॥६५||
इति मल्लिजिनवल्लभो महेन्द्रप्रासारः ॥४०॥ प्रासाद की समचोरस भूमिका बारह भाग करें। उनमें दो भाग का कोण, रे भागका प्रतिरथ, डेढ़ भागका भद्रा, कनिंदी और भद्रनन्दी प्राधे २ भाग की करें। प्रतिरथ मोर कोणे के ऊपर केसरी ओर सर्वतोभद्र, ये दो क्रम और भद्र के ऊपर बारह उरुग पढ़ावें। ऐसा महेन्द्र नामका प्रासाद मल्लिजिनेन्द्र को वल्लभ है !!६३ से १५||
शृंगसंख्या-कोणे ५६, प्ररथे ११२, भद्र १२, एक शिखर, कुल १८१ शृंगा
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