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अष्टमोऽध्यायः
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अन्तिममंगल---
श्रीविश्वकर्म गणनाथमहेशचण्डी
श्रीविश्वरूपजगदीश्वरसुप्रसादात् । प्रासादमण्डनमिदं रुचिरं चकार,
श्रीमएडनो गुणवतां भुवि सूत्रधारः ॥११६।। इति श्रीवत्रधारमण्डनविरचिते वास्तुशास्त्रे प्रासादमण्डने
अष्टमोऽध्यायः समाप्तः । सम्पूर्णोऽयं ग्रन्थः । श्री विश्वकर्मा, गणपति, महेश, चंडीदेवी और विश्वस्त्ररूप धी जगदीश्वर की कृपा से जगत के विद्वानों में सुप्रसिद्ध मंडन नाम का सूत्रधार है। उसने प्रासाद निर्माण विधि का यह प्रासाइमंडन नाम का शास्त्र मानंद पूर्वक बनाया ॥११॥
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इति श्री पंडित भगवानदास जैन ने इस प्रासादमंडन के प्रायवे अपाय को सुबोधिनी नामक भाषादीका समाप्त की।
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