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সুখ কিষান্ত
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ऊपर के श्रीचन्द्रप्रसाद को कोणी और नन्दी के ऊपर एक २ तिलक चढाने से सुविधिहिमाल साहितुराज नाम का प्रसाद होता है ।।४५
__ गसल्या पूर्ववत् २५३ । तिलक-कोणी पर ८, प्रतिकर्ण पर ८, नन्दो पर ८, कुल २४ ।
विभक्ति नवौं । १५-पुष्पवंतत्रासाद.---
चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे चतुर्विशतिमाजिते । मद्राय त्रिपद वत्स ! रथी कर्णाश्च वत्समः ॥४६॥ निर्गमस्तस्प्रमाणेन सर्वशोभासमन्वितम् । रथे करों तथा भद्र शृङ्ग तिलकं न्यसेत् ॥४७॥ पुष्पदन्तस्तदा नाम सुविधिजिनवल्लभः । कार्यः सुविधिनाथाय धर्मार्थकाममोक्षदः ॥॥
इति पुष्पदंतप्रासादः ॥१५॥ ... प्रासाद को समचोरस भूमि का चौबीस भाग करें, इनमें से कोण, प्रतिरथ, उपरथ और भाई, ये सब तीन तीन भाग का रखें । और निर्गम में ये सब समदल रक्लै । भद्र के कर दो उरुशृंग चढावें । कोना, प्रतिस्थ प्रौर उररय ये तीनों के ऊपर दो दो शृंग और एक एक तिला चढ़ाने से पुदर नाम का प्रासाद होता है । यह सुविधि जिन को वल्लभ है। ऐसा प्रासाद बनाने से धर्म अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है ।।४६ से ४१
शुग संख्या कोणे ८, प्रतिकणे १६ उपरथे १६, भद्रे ८ एक शिखर कुल ४६ शृंग। तिलक संख्या-कोणे ४ प्रतिकणे ६, उपरथे । कुल २० तिलक ।
विभक्ति बसी । १६-शीतलजिनप्रासाद
चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे चतुर्विशतिभाजिते । कर्णश्चैव समाख्यात-चतुर्भागश्च विस्तृतः ॥४६॥ प्रतिरथस्त्रपभागो भद्रार्ध भूतभागिकम् ।
रथेपणे च भृङ्गक तवें तिलकं द्वयम् ॥५०॥ प्रा०२५
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