Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 247
________________ ११ धासावमलने कर्णिकायां च द्वे श्रङ्ग प्रासादो जिनबालभः । मुक्तिदो नाम विज्ञ यो भुक्तिमुक्तिप्रदायकः ॥६९ll इति मुक्तिधासायः ॥२६॥ विमलजिनयल्लभ नाम के प्रतिरथ ऊपर एक एक तिलक और दोनों मंदीयों के ऊपर कुट के बदले शृंग चढावें। जिससे मुक्तिद नामका प्रासाद होता है, यह जिनदेव को प्रिय है मौर वैभवादि भोगसामग्री और मुक्ति को देने वाला है ॥६॥ ग गया---भोगणे १२, तिरले १६, कोणी पर १६, नंदी पर १६, भद्रे १६, प्रत्यंग ८, एक शिखर, कुल ८५, शृंग और तिलक ८ प्रतिरप पर। विभक्ति चौदहवीं । २७-अनन्त चिनप्रासाद-- चतुरस्त्रीकृते क्षेत्रे विशविपदमाजिते । त्रीणि त्रीणि ततस्त्रीणि नन्दी पदेति भद्रके ।।७०॥ निर्गम पदमानेन त्रिषु स्थानेषु भद्रके । .. कणे क्रमवयं कार्य रथोषं तत्सम भवेत् ॥७॥ भद्रे चैवोरुचत्वारि नन्दिकायां क्रमवयम् । अनन्तजिनप्रासादो धनपुण्यश्रियं लभेत् ।।७।। इत्यमन्तजिमप्रासादः ॥२७॥ प्रासाद को समचोरस भूमिका बीस भाग करें। उनमें तीन भाग का कोना, तीन भाग का उपरथ, तीन भाग का भद्रा और भद्रनन्दी एक भाग जाने। इन पंगों का निकाला एक भाग का रक्खें । कोस और रय कार तीन तीन क्रम, भद्र के अपर पार उरुग मोर भद्र नन्दी के ऊपर दो क्रम बढ़ाये । ऐसा अनन्ताजनप्रासाद धन, पुण्य और लक्ष्मी को देने वाला है ।।५० से ७२।। ग संख्या कोणे १०८, प्ररथे २१६, नंदी पर ११२, भने १६, एक सिखर, कुल ४५३ शृंग। २८-सुरेन्द्र प्रासाद अनन्तस्य संस्थाने रथोचे तिलकं न्यसेत् । सुरेन्द्रो नाम विज्ञेयः सर्वदेवेषु बमः ॥७३॥ मप्रासादः ॥२६॥

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