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द्वादश उर: भृङ्गाणि प्रत्यङ्गानि सतोऽष्टमः । शीतलश्च तदा नाम प्रासादो जिनवल्लमः ॥ ५१ ॥
इति शीतल जिनप्रासादः ॥१६॥
प्रासाद की सम चोरस भूमिका चीबोस भाग करें। उनमें से चार भाग का कोण, तीन भाग का प्रतिरथ और पांच भाग का भद्रार्ध बनायें। कोण और प्रतिक के ऊपर एक एक श्रृंग प्रीर दो दो तिलक, चारों भद्र के उपर कुल बारह उग तथा आठ प्रत्यंग चढ़ावें | ऐसा शीतल नाम का प्रासाद शीतल जिनकी प्रिय है ४ से ५१ ॥
संख्या--को ४, प्रतिक भने १२ प्रत्यंग ८, एक शिखर, कुल ३३ श्रृंग । तिलक को ८ प्रतिक १६. कुल २४ तिलक ।
१७ कतिदायक प्रासाद---
वषे वत्प्रमाणे च कर्तव्यः पूर्वमानयः । edit च द्वयं शृङ्गे प्रासादः कीर्त्तिदायकः || ५२॥
sia कीर्तिदायकप्रासादः ||१७|| ऊपर के शीतल जिन प्रासाद के कोर के ऊपर का एक तिलक कम करके उसके बदले चढ़ाने से कीर्तिदायक नाम का प्रासाद होता है ॥ ५२ ॥
प्रतिक
भद्रे १२ प्रत्यंग एक शिखर, कुल ३७ श्रृंग ।
संख्याको
free- की ४, प्रतिक १६ ।
सावभवदने
१८- मनोहर प्रासाद---
'कर्णे सप्त प्रतिकर्णे पञ्च मनोहरदायकः । anti च कर्तव्यः स्वरूयो लक्षणान्वितः ॥ ५३॥
इति मनोहरप्रासादः ॥१८॥
ऊपर के प्रासाद के अनुसार मान और स्वरूप जानें। विशेष यह है कि कोखे के ऊपर एक केसरी क्रम और दो श्रवत्सग तथा प्रतिक के ऊपर एक केसरी क्रम बढ़ाने से मनोहर नाम का प्रासाद होता है ॥५३॥
संख्याको २८ प्रतिक ४० भई १२ प्रत्यंग ८ एक शिखर, कुलग
१. 'कर सह प्रतिकर प्रासादश्य मनोहर: '