Book Title: Prasad Mandan
Author(s): Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar

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Page 238
________________ अथ जिनेन्द्रप्रासादाध्यायः विभक्ति fast | चतुरस्रीकृते क्षेत्रे चतुर्दश विभाजिते ||२५|| कर्णो द्विमागिको ज्ञेयः प्रतिकस्तथैव च । निर्गमस्तत्समो ज्ञेयो नन्दिका भागविश्रुता ||२६|| भद्रा व द्विभागेन कर्त्तव्यं च चतुर्दिशि । कर्णे क्रम कार्यं प्रतिकर्णे तथैव च ||२७|| भद्र चैवोचत्वारि तथाष्टौ प्रत्यङ्गानि च । नन्दिकायां कूटं सुमतिजिननामतः ||२८|| ६- सुमतिजिनवल्लभ प्रसाद ७- पद्मप्रभजिन प्रासाद 安码表 t इति सुमतिजिनवल्लभप्रासादः ||६|| reate after चौदह भाग करें, उनमें से दो भाग का कोना, दो भाग का प्रतिरम, एक भाग की नन्दी और दो भाग का भद्रार्थ बनायें । कोना और प्रतिरथ का दिर्गम समदल रक्खें फोने के ऊपर दो क्रम, प्रतिरथ के ऊपर दो कम, प्रत्येक भद्र के ऊपर चार उरुग आठ प्रत्यंगशृंग और नदी के ऊपर एक श्रीवत्सशृंग तथा एक कूट चढायें | यह सुमतिजिन नाम का प्रसाद है ।।२५ से २५।। श्रृंग संख्या- कोने ५६ प्रतिर ११२, भद्र १६, प्रत्यंग, ८, नंदी के ऊपर ८, एक शिखर कुल २०१ श्रृंग | चार कूट नंदों पर 1 विभक्ति छी । चतुरखीकृते क्षेत्रे विशधा प्रतिभाजिते । arit arrai at प्रतिकर्णस्तथैव च ||२६| after नन्दिका भागाद्रार्धं चतुर्भागकम् । कर्णे श्रमद्वयं कार्य प्रतिकर्णे तथैव च ॥ ३० ॥ केसरी सर्वतोभद्रं क्रमद्वयं व्यवस्थितम् । afari शृङ्गकूटं नन्दिकायां तथैव च ॥३१॥ मद्रे चैवोचत्वारिष्टौ प्रत्यङ्गानि च । पद्मवनमनामोऽयं जिनेन्द्रे पद्मनायके ||३२|| इति पद्मप्रभजिन प्रासादः ॥७३

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