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अथ जिनेन्द्रप्रासादाण्याय
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पाठ उभंग और पाठ प्रत्यंग कोने पर चढ़ावें । कोगों के ऊपर केसरी, सर्वतोभद्र और मंदन ये तीन कम चढ़ायें । ऐसा प्रजितजिनको बल्लम कामदायक नाम का प्रासाद है ॥१३ से १६ ।।
. ऋगसंख्या-कोणे १०८, प्रतिकणे ११२, भद्र ८, प्रत्यंग ८ और एक शिखर, कुल २३७ मुंग।
तोसरी विभक्ति । ३-संभवजिनवल्ल्भ-रस्नकोटिप्रासाव--
चतुरस्रीकृते क्षेत्रे नवभागविमाजिते । भद्रा सार्धमागेन चैकमागः प्रतिरथः ॥१७॥ कर्णिका नन्दिका पादा सार्थको विवरण ।। कर्णे क्रमद्वयं कार्य प्रतिकणे तथैव च ॥१॥ 'केसरीसर्वतोभद्र-क्रमद्वयं व्यवस्थितम् । कणिकानन्दिकयोश्च जमेकैकं कारयेत् ॥१६॥ षोडश उस्माणि चाष्टौ प्रत्यङ्गानि च । रत्नकोटिश्च नामायं प्रासादः संभवे जिने ॥२०॥
इति संभवाजिनवल्लभो रत्नकोटिप्रासाब: ।।३।। प्रासाद' को समचोरस भूमिका नव भाग करें। उनमें से डेढ़ भाग का भद्रार्थ, एक भाग का प्रतिरथ, करणी और नन्दिका पाव पाव भाग की और कोण हे भाग का रक्खें । कोणे के ऊपर और प्रतिकर्ण के ऊपर दो दो क्रम केसरी और सर्वतोभद्र पढ़ायें। करणी और नन्दिका के ऊपर एक एक श्रृंग चढ़ावें। चारों दिशा के भद्र के उपर सोलह उरुग और पाठ श्यंग कोने पर चलावें । ऐसा संभवाजिन को यल्लभ रत्नकोटि नाम का प्रासाद
है।।१७ से २०॥ शृंगसंख्या-कोरणे ५६, प्रतिकणे ११२, कणीपर ८, नंदीपर ८, उहग १६, प्रत्यंग ८. और एक शिखर, कुल २०६ भंग |
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१. 'प्रथमकमकेसरी चवितोयं च धीवत्सकम्'
२, शनवर्ष '