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कोणे के ऊपर चार'क्रम, प्रतिकर्ण के ऊपर तीन कम, उपरष और नन्दिरों के आर दो २ क्रम चड़ावें चारों दिशा के भद्र के आर कुल बोस उरुशृंग पहा । तपा सोलह प्रत्यंग कोने पर चढ़ावें । कोसा के अपर नीचे से पहला कम नन्दिश, दूसरा नन्दशालिक, तीसरा नंदन और चौथा केसरो क्रम चढ़ावें और उसके ऊपर एक शोभाषमान तिलक
चढ़ावें । सः ऋषशिल को पा लभूषण नामका प्रासाद है ।।१० से १२॥
श्रृंगसंस्था-कोरणे २२४, प्रतिकर्णे २५०, उपरये १४, नन्दिनों के ऊपर ४३२, भद्र २०, प्रत्यंग १६, एक शिखर, कुल १११७ अंग और चार तिलक कोणे के ऊपर ।
विभक्ति दूसरी। २-प्रजितजिनवल्लभ-कामदायकप्रासाद---
चतुरस्रीकृते क्षेत्रे द्वादशपदमाजिते । कर्णमागद्वयं कार्य प्रतिकर्णस्तथैव च ॥१३॥
भद्रार्ध च विभागेन चतुर्दिक्ष व्यवस्थितम् । कर्णे क्रमप्रय कार्य प्रतिकणे क्रमद्वयम् ॥१४॥ अष्टौ चैवोरुशृङ्गाणि ह्यष्टौ प्रत्यङ्गानि च । कणे च केसरी दद्यात् सर्वतोभद्रमेव च ॥१५॥ नन्दनमजिते देयं चतुष्कर्णेषु शोभितम् । कामदायकप्रासादो जितजिनवल्लभः ॥१६॥
इति अजित जनवल्लभः कामदायकप्रासादः ॥२॥ प्रासाद को समशेरस भूमिका बारह भाग करें, उनमें से दो भागका कोण, दो भाग का प्रतिकर्ण और दो भाग का भद्रा रक्खें । कोणे के ऊपर तीन क्रम, प्रतिकर्स के ऊपर दो कम,
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१. इस प्रकरण में किसी श्लोक में कम और किसी श्लोक में 'कम' ऐसे दो प्रकार के शब्दों का प्रयोग
प्राचीन प्रतियों में देखने में प्राता है। मैंने प्रायः कर्म के स्थान पर क्रम शमा प्रयोग ठीक समझकर किया है। बाकी दोनों शब्द ठीक है । क्रम कहने से शृगों का अनुक्रम और कर्म (काम) कहने से मृगों का समूह प्रथं होता है। काम का समूह प्रथं सोने चांदी के वरण मनाने शलों में प्रचलित है।
ये मोग१६.बरग के समूह को एक काम बीमते । २. मना साधभागेन नन्दी तु पापभागिका ।' पाठान्तरे।