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अब जिनेन्द्रप्रसादाभ्यायः
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सलनिर्माण
प्रासाददीर्घतो व्यासो भिसिवाह्य सुराजये । षोडशाशहरे भागं शेषं च द्विगुणं भवेत् ।।५।। प्रथमे नश्मे चैव द्वितीये चतुरो भवेत् । अयं विधिः प्रकर्शव्यो भागं च द्विव्यंशं भवेत् ॥६॥
तत्र युक्ति प्रकर्तव्यो प्रासादे सर्वनामतः । शिवमुखे मया श्रुतं भाषितं विश्वकर्मणा |७||
मण्डोवर के बाहर के भाग तक प्रासाद की लम्बाई और चौड़ाई का गुणाकार करके उसको सोलह से भाग दे, जो शेष रहे उसको दुगुणा करना..................!
प्रथमा विभक्ति। १-कमलभूषण (ऋषभजिनवल्लभ) प्रासादचतुरस्रीकृते क्षेत्र द्वात्रिंशत्पदभाजिते । कर्णभागत्रय कार्य प्रतिकर्षस्तथैव च ॥ उपरथस्त्रिभागश्च भद्रा बेदभागिकम् ।। नन्दिका कर्णिका चैव चैकभागा व्यवस्थिता ॥६॥
प्रासाद की सममी रस भूमिका बत्तीस भाग करें, उनमें से तीन भाग का कोण, तीन भाग का प्रतिरय, तीन भाग का उपरथ और चार भाग का भद्रार्ध रक्खें । कीरिंगका और नन्दिका एक २ भाम की रक्खे ।।८।। कणे च क्रमचत्वारि प्रतिकणे क्रमत्रयम् । उपरथे द्वयं शेयं कायां क्रमद्वयम् ॥१०॥ विंशतिरुरुशृङ्गाणि प्राङ्गानि च पोडश । कणे च केसरी दयानन्दनं नन्दशालिकम् ॥११॥ प्रथमक्रमो नन्दीश ऊचे तिलकशोभनम् । कमलभूषणनामोऽयं ऋषभजिनवल्लभः ॥१२॥
इति ऋषभजिनवल्लभः कमलभूएणप्रासादः 1१।।
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