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प्रासादमएडने
प्रासाद को समधोरस भूमि का पीस भाग करें। उनमें से दो भाग का कोना, दो भाग का प्रतिरथ, कारणका एक भाग, नंदी एक भाग और भन्नार्थ चार भाग का रक्खें । कोना और प्रतिरष के ऊपर केसरी और सर्वतोभा ये ही क्रम पढ़ाई। कलिका और नंदी के ऊपर एक एक शृंग पोर एक एक कट चढ़ाएं, यह पचप्रभजिनदेव को वल्लभ ऐसा पपस्लभ नाम का प्रासाद है ॥३९ से ३२||
गतांकष्टा-को १६, सिर १११ का , नदी पर ८, भने १६ और प्रत्यंग + एक शिखर कुल २०६ श्रृंग और प्रा. कूट-चार कणिका और चार नयी पर । -पपरागप्रासाद
पलवलभसंस्थाने कसंध्यः पचरागकः । रथो तिलकं दद्यात् स्वरूपो लक्षणान्वितः ॥३३॥
इति परागप्रासाद इस प्रासाद का मान और स्वरूप ऊपर के पद्मवल्लभ प्रासाद के अनुसार जानें। विशेष यह है कि-प्ररथ के अार एक एक तिलक भी चढाये, जिसे पद्मराग नाम का प्रासाद होता है ॥३३॥ ६-पुष्टिवर्धनप्रासाद---
तपे च प्रकर्तव्यः कर्णोघे तिलक न्यसेत् । दृष्टिवद्धननामोऽयं तुष्टिं पुष्टिं विवर्धयेत् ॥३॥
इति पुष्टिवर्धन प्रासावः ॥ इस प्रासाद का मान मोर स्वरूप पदम राग प्रासाद के अनुसार जाने । विशेष यह है कि कोणे के ऊपर एक एक तिलक भी पढाने से तुष्टि पुष्टि को बढ़ाने वाला पुष्टिवर्धन नाम का प्रासाद होता है ॥३४॥
विभक्ति सातवीं। १०-सुपार्वजिनवल्लभप्रासाद
दशभागीकृते क्षेत्रे कर्णोऽस्य च द्विभागिकः । प्रतिकर्णः सार्धभागो निर्गमे सत्सम भवेत् ।।३।। भद्रा च सार्धभागं कपिले भद्रमानयोः । निर्गमें पदमानेन चतुर्दिच च योजयेत् ॥३६॥