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प्रासापमएपने
५-नन्दीशप्रासाद
त्रिभागं च भवेद् भद्र भद्रार्ध प्ररथस्तथा । कणे शृङ्गद्वयं भद्रे एकैकं प्ररथे तथा ॥१६॥
इति नन्दीशप्रासादः | यह नन्दीशप्रासाद का मान और स्वरूप सर्वतोभद्र प्रासाद के अनुसार जानें। विशेष यह है कि----छ: भाग का भद्र है. उसके बदले तीन भाग का मद्र और डेढ़ २ भाग का प्रतिरथ बनावें । कोणे के ऊपर दो २, भद्र के ऊपर एक २ और प्रतिरथ के ऊपर एक २ शृंग चढ़ावें ॥१६
भृगसस्या-कोणे ८, प्ररथे ८, भद्रे ४ और एक शिखर, एबं कुल २१ शृंग।
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६-मंदरप्रासाद---
द्वादशांशस्तु विस्तारो मूलगर्भस्तदर्धतः । भागमागं तु कर्तव्या द्वे भित्ती चान्धकारिका ॥२०॥ वर्णप्ररथभद्रा कारयेद् द्विद्विभागतः । प्ररथः समनिष्कासो भद्रं भागेन निर्गमम् ।।२१॥ कर्णे द्वे भद्रके द्वे च चैकं प्रतिरथे तथा । सघण्टा कलशा रेखा रथिकोद्गमभूषिताः ॥२२॥
इति मन्दरप्रासादः ॥६॥ प्रासाद को समचौरस भूमिका बारह भाग करें। उनमें से छः भाग का गभारा बनावें, तथा एक २ भाग की दोनों दीवार और एक २ भाग की भ्रमणी (परिक्रमा ) बनावें । गभारे के बाहर के भाग में कोगा, प्ररथ और भद्रा ये सब दो २ भाग का रक्खें । उसका निर्गम समदल रक्खें और भद्रका निर्गम एक भाग रक्खें। कोणे के ऊपर दो २ शृंग, भद्रके ऊपर दो २ उरुशुम और प्रतिरथ के ऊपर एक २ शृग चढ़ावें। मामलसार, कलश, रेखा, गवाक्ष और उद्गम, ये सब शोभायमान बनावें ।।२० से २२।।
शृगसंख्या-कोणे ८, प्ररथे ८ भद्रे च और एक शिखर, एवं कुल २५ शृगा
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