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परिशिष्टे सरीप्रासादः
Himanawwwermirtiminin
Firmwarun
तपा कोणे के ऊपर तीन श्रृंग हैं, उसके बदले दो शृग और उसके अपर तिलक बढ़ाना पाहिये । ऐसा कैलास मानका प्रासाद ईश्वर को हमेशा प्रिय है ॥२६॥
. भृगसंख्या--कोणे, पढरे १६, नंदी पर ८, भद्रं १२, एक शिखर, एवं कुल ४५ शृंग पार तिलक कोमे और नदी के ऊपर । १२-पषिनीजय प्रासाद
रेखोघे तिलकं त्यक्त्वा शृङ्ग तत्रैव कारयेत् । पृथ्वीजयस्तदा नाम कर्तव्यः सर्वदैवते ॥३०॥
इति पृथ्वीजयप्रासादः ॥१२॥ यह प्रासाद का.तसमान और स्वरूप कैलासप्रासादकी तरह जानें । विशेष यह है किकोणेके पर का तिलक हार के सयो बाहरे गढा ऐसा पृथ्वीजय नामका प्रासाद
सब देवों के लिये बनावें ||३०|| ..... गसंख्याकोणे १२, प्रतिरथे १६, नंदी के ऊपर ८, भद्रं १२, एक शिखर, एवं कुल ४ग और तिसक ८ नदी के कार !
षोडशशिकविस्तारे विभाग का विस्तरः । नन्दिका बैकमागेन द्वयंशः प्रतिरथस्तथा ॥३१॥ पुनर्नन्दी भवेद् भागं भद्रं वेदांशविस्तरम् ।
समस्तं समनिष्कासं भद्रे भागो विनिर्गमः ॥३२॥ प्रासाद को समझोरस भूमि का सोलह भाग करें। उनमें से दो भाग का कोरण, एक मागकी नन्दी, दो भागका प्रतिरप, एक भाग को दूसरी नन्दी और दो भागका भद्रार्ध बनावें । ये सब अंगोका निर्गम समबल और भद्रका निर्मम एक भाग रक्खें ॥३१-३२॥
चतुष्टयंशको गर्भो वेष्टितो भीचिभागतः ।
बालभीचिर्भवेद् भागा द्विभागा च भ्रमन्तिका ॥३३॥ सोलह भाग में गभारे का विस्तार पाठ भाग ( समचौरस ६४ भाग ) करें गभारे को दीवार एक भाग, प्रमणी दो भाग और बाहर की दीवार एक भाग रक्खें ।।३३।।