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परिशिष्टे केसरीपासादः
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शोभायमान बनावें । यह बैडूर्य नाम का प्रासाद सब देवों के लिये बनाना चाहिये ॥४६॥
श्रृंगसंख्या-कोने ९२, प्रत्यंग ८, प्रतिरये २४, भद्रनंदी पर ८, भद्र १६ एक शिखर, एवं कुल ६६ मुंग। तिलक संख्या-कर्णनंदी पर १६, प्रतिरथ नंदी पर १६ और भद्रनन्दी पर ८, एवं कुल ४० तिलक। १५-पपरागप्रासाद
तथैव दिलकं नन्या शृङ्गयुग्मं तु संस्थितम् । परामसदा नाम सर्वदेवमुखावहः ॥४७||
___ इति परागप्रासादः ||१८|| इस प्रासाद कामान और स्वरूप वैडूर्यप्रासाद की तरह समझे। विशेष यह है कि---- कोणे के ऊपर से तीसरा शृंग हटा करके उसके बदले में तिलक चढ़ावें और भद्र नंदी के ऊपर जो एक तिलक और एक श्रृंग है, उसके बदले दो श्रृंग रक्खें। ऐसा पद्मराग नाम का प्रासाद सब देवों के लिये सुख कारक है ।।४७]
__ शृगसंख्या-कोरणे, प्रत्यंग ८, प्रतिरये २४, भद्र नंदी पर १६, भद्र १६, एक शिखर, एवं कुल ७३ शृंग । तिलक संख्या-कोरणे ४, कर्णनदी पर १६ प्रतिरथ नंदी पर १६ एवं कुल ३६ तिलक।
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१६-वकप्रासाद
रेखोये च ततः शृंगं कर्तव्यं सर्वशोभनम् । पचासवेति नामासौ शक्रादिसुरवल्लभः ॥४८॥
इति बजप्रासादः॥१६॥ इस प्रासाद का मान और स्वरूप पद्मराग प्रासाद की तरह जाने । विशेष यह है किकोणे के ऊपर से तिलक हटा करके उसके बदले में शृग बढ़ायें ! यह बजक प्रासाद इन्द्र प्रादि देवों को प्रिय है ||xci
शृगसंख्या-कोरणे १२, प्रत्यंग ८, प्रतिरथे २४, भद्रनंदी पर १६ भद्र १६, एक शिखर, कुल ७७ शृंग। तिलक संस्था करण नंदी पर १६, प्रतिरथ नन्दी पर १६, कुल ३२ सिलक । २०-मुकुटोज्ज्वलनासाद---
'मकी विशतिथा क्षेत्रे विभागः कर्णविस्तरः । सार्थमा भनन्दी कणवत्प्ररथस्तथा ॥४६॥