________________
परिशिष्टे केसरीप्रासादः
२१-ऐरावतप्रासाद --
रेखोचे च ततः कर्तव्यं सर्व कामदम् । ऐरावतस्तदा नाम शादिसुरवल्लभः ॥५था।
. इत्यै रावतप्रासादः ॥२१॥ इसका तलमान और स्वरूप मुकुटोज्ज्वल प्रासाद के अनुसार जाने । विशेष यह है किकोणे के ऊपर का तिलक हटाकर के उस जगह ,म रक्खें। यह सब इच्छित फल देनेवाला है । ऐसा ऐरावतप्रासाद इन्द्रादि देवों के लिये प्रिय है ॥५५॥
शृंग संस्था- कोणे १२, नंदी पर ८, प्रत्यंग ८, प्ररथे २४, नंदीवर ८, भद्रनन्दी पर , भद्र १६, एक शिखर, कुल ८५ शृंग । तिलक संख्या-कर्णनन्दी पर ८, प्रति मन्दी पर ८, कुल १६ तिलक । २२-राजहंसप्रासाद
तथैव तिलकं कुर्याद् भद्रकणे तु शृङ्गकम् । राजहंसः समाख्यातः कर्तव्यो ब्रह्म मन्दिरे ।।५।।
इति राजहंसप्रासादः ॥२२॥ इसका तलमान और स्वरूप ऐराबत प्रसाद के अनुसार आने । विशेष यह है किकोरो के ऊपर तीसरा शृंग के.बदले में एक तिलक चढ़ावे, अर्थात् दो शृंग और एक तिलक बहावें । तया भद्रनंदा के जार एक श्रृंग बढावें । ऐसा राजहंस प्रासाद का स्वरूप है, वह ब्रह्मा के लिये बनावं ।।५।।
ग संख्या-कोरणे ८. प्रत्यंग , कर्ण नन्दी पर ८, प्ररथे २४, प्ररथ नंदी के ऊपर ८, भद्रनन्दी के ऊपर १६, भद्र १६ और एक शिखर, कुल ८६ भृग। तिलक संख्या-कोरणे ४, कर्ण नंदी पर ८. प्ररथनं दी पर , एवं कुल २० तिलक । २३-पक्षिराज (गरुड) प्रासाद
रेखोये च ततः शृङ्ग कर्तव्यं सर्वकामदम् । पचिराजस्तदा नाम व्यः स श्रियः पतेः ।।५७।।
इति पक्षिराजप्रासादः ॥२३॥ इस प्रासाद का मान और स्वरूप राजहंस प्रासाद के अनुसार जाने । विशेष यह किकोणे के कार का तिलक हटा कर के उसके बदले शृंग चढ़ावें । ऐसा पक्षिराज प्रासाद विष्णु के लिये बनाना चाहिये ।। ५७॥
श्रृंगसंख्या-कोरा १२, प्रत्यंग, कर्णनदी पर ८, प्ररथे २४, प्ररयनन्दी पर ८, भनंदो पर १६, भद्रे १६ और एक शिखर, एवं कुल ६३ ऋग । तिलक संख्या कर्णनन्दी पर ८ और प्ररथ नन्दी पर , एवं कुल १६ तिलक ।।