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परिशिष्टे केसरीप्रासादः
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दो कणिका का तीन भाग छोड़ करके बाकी तीन भाग रहे उतना मुखभद्र का विस्तार सखें ॥१५॥
कुछ
४-नविशालप्रासाद
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भद्रके ऊपर पांच २ उम करें। कोहे के ऊपर दो २ एवं कुल आठ श्रृंग चढायें मामलसार और कलश वाला श्रीवत्स शिखर बनावें ||१६||
संख्या- प्रत्येक कोण पर २-२ और एक शिखर एवं कुलग
३- नंदनप्रासाद---
मद्रे वै तद्गमाः पञ्च कानि च । श्रीवत्सशिखरं कार्य घण्टाकलशसंयुतम् ||१६||
इति सर्वतोभद्रप्रासादः ॥२॥
इति नन्दनप्रासादः ॥ ३॥ यह नन्दन प्रासाद का मान और स्वरूप सर्वतोभद्र प्रासाद के अनुसार जानें। फर्क इतना कि भद्र के गवाक्ष और उद्रम के ऊपर एक २ उग चढ़ायें | इसको बनानेवाला स्वामी मानन्द में रहता है और सब पापों का नाश करता है ।। १७ ।।
श्रीari मद्रमारूढं रथिकोद्गमभूषिते । नन्दने नन्दति स्वामी दुरिति धत्रम् ॥१७॥
संख्या--चार को चार भद्रे और एक शिखर एवं कुल १३ श्रृंग ।
तस्यैवं भद्रोर्थे शृङ्ग भद्रं तस्यानुरूपतः 1 नन्दिशालो गुणैर्युक्तः स्वरूपो लचणान्वितः || १८ ||
इति नन्दिशाल प्रासादः ॥४ इस नन्दिशालप्रसाद का तलमान और स्वरूप नन्दन प्रासाद के अनुसार जानें | विशेष अधिक चढ़ावें तो यह नन्दिशाल प्रासाद सब गुणों से
इतना कि भद्र के ऊपर एक २ उप
भी
युक्त अच्छे लक्षणवाला सुन्दर बनता है ॥ १८ ॥
संस्था को
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एक शिखर, एवं कुल १७ श्रृंग ।