SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्टे केसरीप्रासादः १७१ दो कणिका का तीन भाग छोड़ करके बाकी तीन भाग रहे उतना मुखभद्र का विस्तार सखें ॥१५॥ कुछ ४-नविशालप्रासाद swwwlad HERIAL भद्रके ऊपर पांच २ उम करें। कोहे के ऊपर दो २ एवं कुल आठ श्रृंग चढायें मामलसार और कलश वाला श्रीवत्स शिखर बनावें ||१६|| संख्या- प्रत्येक कोण पर २-२ और एक शिखर एवं कुलग ३- नंदनप्रासाद--- मद्रे वै तद्गमाः पञ्च कानि च । श्रीवत्सशिखरं कार्य घण्टाकलशसंयुतम् ||१६|| इति सर्वतोभद्रप्रासादः ॥२॥ इति नन्दनप्रासादः ॥ ३॥ यह नन्दन प्रासाद का मान और स्वरूप सर्वतोभद्र प्रासाद के अनुसार जानें। फर्क इतना कि भद्र के गवाक्ष और उद्रम के ऊपर एक २ उग चढ़ायें | इसको बनानेवाला स्वामी मानन्द में रहता है और सब पापों का नाश करता है ।। १७ ।। श्रीari मद्रमारूढं रथिकोद्गमभूषिते । नन्दने नन्दति स्वामी दुरिति धत्रम् ॥१७॥ संख्या--चार को चार भद्रे और एक शिखर एवं कुल १३ श्रृंग । तस्यैवं भद्रोर्थे शृङ्ग भद्रं तस्यानुरूपतः 1 नन्दिशालो गुणैर्युक्तः स्वरूपो लचणान्वितः || १८ || इति नन्दिशाल प्रासादः ॥४ इस नन्दिशालप्रसाद का तलमान और स्वरूप नन्दन प्रासाद के अनुसार जानें | विशेष अधिक चढ़ावें तो यह नन्दिशाल प्रासाद सब गुणों से इतना कि भद्र के ऊपर एक २ उप भी युक्त अच्छे लक्षणवाला सुन्दर बनता है ॥ १८ ॥ संस्था को ˋ एक शिखर, एवं कुल १७ श्रृंग ।
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy