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________________ प्रासादमएडने यी रहद , समझाम, मं सर, क्षेत्राधे च भवेद् भद्रं भद्राय कर्णविस्तरः । कर्णस्याप्रमाणेन कर्तव्यो भद्रनिर्गमः ||११|| प्रासाद की भूमिके नाप से प्राधा भद्रका विस्तार रक्खें। इससे प्राधे मामका कोणा का विस्तार रक्खें। कोणे के प्राधे मान का भद्रका निर्गम रखखें ॥११॥ चतुष्कर्णेषु ख्यातानि श्रीवत्सशिखराणि च । राथकोद्गमे च पञ्चैव केशरी गिरिजाप्रियः ॥१२॥ इति केसरीप्रासादः ||१|| प्रासाद के चारों कोनों के ऊपर एक २ श्रीवत्स अंग चढ़ावें, तथा भद्रके ऊपर रथिका और उद्गम बनावें । इस प्रकार का केसरी नामका प्रासाद पार्वती देवी को प्रिय है ॥१२॥ शृग संख्या चार कोणे ४ और एक शिखर एवं कुल ५ शृंग। २-सर्वतोभद्रप्रासाद क्षेत्रे विभक्ते दशधा गर्भः षोडशकोष्ठकै । भित्ति भ्रमं च मित्तिं च भागभागं प्रकल्पयेत् ॥१३॥ प्रासाद की समचोर भूमिका दस २ भाग करें। उनमें से मध्य गभारा कुल सोलह भाग का रक्खें । बाकी एक भाग की दीवार, एक भाग की प्रमपी और एक भागको दूसरी बाहर की दीवार रक्खें ।।१३| द्विभागः कर्ण इत्युक्तो भद्रं षड्भागिकं तथा । निर्गमं चैकमागेन भामिका पार्वक्षोभणा ॥१४॥ दो २ भाग का कोणा और छभागका भद्र का विस्तार रक्खें । भद्र का निर्गम एक भाग रखें और भन के दोनों तरफ एक २ भाग की एक २ कोणी बनावें ॥१४॥ कधिका चार्धभागेन भागाध भद्रनिर्गमम् । मागत्रयं च विस्तारे सुखमद्र' विधीयते ॥१५॥ भद्र के दोनों तरफ प्राधे २ भाग की एक २ करिणका भी बनाना-इस का और कोणीया का निर्गम पाधा भाग और भद्र कार्गम आधा भाग, इस कार कुल एक भाग भद्र का निर्गम जानें । भद्रका विस्तार छ भाग रखना ऊपर लिखा है, उनमें से दो कोणी और
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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