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________________ परिशिष्ठे केसरीप्रासादः केसरी, सर्वतोभद्र, नन्दन, नन्दशालिक, नन्दीश, मंदर, श्रीवत्स, अमृतोद्रव, हिमवान्, हेमकूट, कैलाश, पृथिवीजय, इन्द्रनील, महानील, भूधर, रत्नकूटक, वैडूर्य, पद्मराग, वज्रक, मुकुटोज्ज्वल, ऐरावत, राजहंस, गरुड, वृषभ और मेरु ये पचीस प्रासाद सांधारजाति के हैं । उसका प्रनुपसे यथार्थ वर्णन किया जाता है ||३ से क्ष 'दशहस्ताद बस्तान प्रासादो भ्रमसंयुतः | पत्रिंशान्तं निरन्धारा घाट्य वेदादितः ||७|| यदि प्रासाद का मान दस हाथ से न्युन नहा तो वह प्रसाद भ्रम (परिक्रमा) वाला बना सकते है । एवं चार हाथ से छत्तीस हाय तक के मान का प्रसाद fear भ्रमका भी बना सकते हैं ||७|| पञ्चविंशतिः सन्धाराः प्रयुक्ता वास्तुवेदिभिः । भ्रमहीनास्तु ये कार्या: शुद्रच्छन्देषु नागराः ||८| १६६ वास्तुशास्त्र के विद्वानों ने ये साम्बार (परिक्रमा वाले) पचीस प्रासाद शुद्ध नागर जाति के कहे हैं, वे भ्रम रहित भी बना सकते हैं ||| १- केसरीप्रासाद चतुरस्रीकृते क्षेत्रे प्रष्टाष्टकविभाजिते । भागभागं भ्रमभित्ति-द्विभागो देवतालयः ॥६॥ सान्धार जाति के प्रासाद की समोरस भूमि के आठ २ भाग करें, उनमें से एक भाग की मी एक २ भाग को दो दीवार और दो भागका गमारा बनाना चाहिये || निरन्धारे पदा भित्ति र गर्भ प्रकल्पयेत् । मध्यच्छन्दश्च वेदास्रो बाह्य कुम्भायतं भृगु ||१०|| यदि प्रसाद निरंवार बनाना हो तो प्रासाद के मान के पौधे भागको दीवार और प्रा मानका गंभारा बनाना चाहिये। जैसे- श्राठ हाथ के मानका प्रासाद है, तो उसका चौथा भाग दो २ हाथ की दीवार और चार हाथ का गभारा बनायें | मध्य में गभारा समचोरस रक्खें । गमारा के बाहर कुंभा की लंबाई के मानको कहता हूं ॥०॥ १. 'दशहस्तावधी नास्ति ।' २. गधारेके चारों तरफ फेरी देने के लिये परिक्रमा बनी हो ऐसे प्रासादों को सांधार प्रासाद कहा जाता है और परिक्रमा बनी हुई न होवे तो निरंधार प्रासाद कहा जाता है । प्रा० २२
SR No.090379
Book TitlePrasad Mandan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages277
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size7 MB
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