________________
उक्टमोऽध्यायः
..........
..
पुषाथ वितथश्चैव गृहक्षतो यमस्तथा ।
गन्धर्वो भृङ्गराजश्च मृगः सप्त सुरा इति ॥१०॥ पग्निकोण में जानुके इ.पर अग्नि देव और दाहिने पैर को नलीके ऊपर पूषा आदि सात देव-पुषा, वितथ, गृहक्षत, यम, गान्धर्व, भृगराज और मृग, ये सात देव स्थित है ।।१०४-१०५१
पादयोः पितरस्तस्मात् सप्त पादानलीस्थिताः । दौवारिकोऽथ सुग्रीवः पुष्पदन्ती जलाधिपः 11१०६।। 'असुरशीषपक्ष्माश्च रोगो जानुनि संस्थितः ।
नागो मुख्यश्च भन्नाटः सोमो गिरिश्च बाहुगाः ।।१०७॥ दोनों परके ऊपर पितृदेव, बायें पैरकी नली पर दौवारिक, सुग्रीव, पुष्पदंत, जलाधिप (वरुष), असुर, शोष, और पापयक्ष्मा ये सात देव स्थित है । नाग, मुरुया, मलाट, कुबेर और गिरि (शैल), ये पांच देव बाबी भुजा पर स्थित हैं ।।१०६--? ०७१
अदितिः स्कन्धदेशे च वामे कर्णे दितिः स्थितः ।
द्वात्रिंशद्बाह्यमा देवा नाभिपृष्ठे स्थितो विधिः ।।१०।। मायें स्कंध पर अदिति देव और बायें कान पर दितिदेव स्थित है। इस प्रकार बत्तीस देव वास्तुपुरुष के बाह्य अंगों पर हैं। मध्य नाभि के पृष्ठ भाग में ब्रह्मा स्थित है ।।१०।।
अयमा दक्षिणे वामे स्तने तु पृथिवीधरः ।
विवस्वानऽथ मित्रश्च दक्षवामोरुगावुभौ ॥१०॥ दाहिने स्तन पर अर्यमा और बायें स्तन पर पृथ्वीधर देव स्थित है । दाहनी अरु पर विवस्वान और बायीं ऊरु पर मित्रदेव स्थित है ॥१०६11
आपस्तु गलके बास्तो-रापवत्सो हृदि स्थितः ।
सावित्री सविता तद्वत कर दक्षिणमाश्रिती ॥११०॥ वास्तुपुरुष के गले पर आपदेव, हृदय के कार प्रापवत्स देव स्थित हैं। दाहिने हाथ पर सावित्री और सविता ये दो देवियां स्थित हैं ।।११०॥
इन्द्र इन्द्रजयो मेढ़े रुद्रोऽसौ वामहस्तके ।
रुद्रदासोऽपि तव इति देवमयं वपुः ॥११॥ १. 'शेष ।' २. 'सावित्र' ।
"
"""".
...*.","
nya