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परिशिष्ट नं.-१ केसरी आदि २५ प्रासाद ।
(अपराजितपुच्छा सूत्र १५६ ) विश्वकर्मोवाच---
सान्धारांश्च ततो वक्ष्ये प्रामादान पर्वतोपमान् ।
शिखरधिविधाकार-काण्डच विभूषितान् ॥१॥ पर्वत के जैसे शोभायमान, अनेक प्रकार के शिखरवाले और अनेक भृगों से विभूषित, ऐसे सान्धार जातिके प्रासादों को कहता हूं। ऐसा विश्वकर्मा कहता है ||१||
आयः पञ्चाण्डको ज्ञेयः केसरी नाम नामतः ।
तावदन्तं चतुर्थ द्वि-विदेकोतरं शतम् ॥२॥ प्रथम केसरी नाम का प्रासाद पांच गो वाला है । पीछे प्रत्येक प्रासाद के ऊपर चार २ शुग बढाने से पच्चीसवें अंतिम मेरु प्रासाद के ऊपर एक सौ एक शृग होजाता है ।।२।। पच्चीस प्रासादों का नाम----
केशरी सर्वतोभद्रो नन्दनो नन्दशालिकः । नन्दीशो मन्दरश्चैत्र श्रीवत्सश्चामृतोङ्गवः ॥३॥ हिमवान् हेमकूटश्च कैलासः पृथिवी जयः । इन्द्रनीलो महानीलो भूधरो रत्नकूटकः ॥४॥ बैड्यः पनरागश्च बनको मुकुटोज्ज्वलः । ऐरावतो राजहंसो गरुडो पभस्तथा ॥॥ मेरुः प्रासादराजः स्याद् देवानामालयो हि सः ।
संयोगेन च सान्धारान् कथयामि यथार्थतः ॥६॥ १. नकभूषितान् ।' २. 'सावन्तश्चतुरो वृदिः ।