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द्वितीयोऽध्याय
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त्रिदेव स्थापना क्रम---
. रुद्रखिपुरुषे मध्ये रुद्राद्वामगतो हरिः ।
दक्षिणा भवेद् ब्रह्मा विपर्यासे भयावहः ॥४६॥ त्रिपुरुष प्रासाद में महादेव को मध्य में स्थापित करें। उसको बायीं मोर विष्णु और दाहिनी ओर ब्रह्मा को स्थापित करें। इससे विपरीत स्थापन करेंगे तो भयकारक होंगे ॥४६॥ त्रिदेवों का न्यूनाधिक मान----
रुद्रयाँभागोनी हरि विमिरा । तनु न्या पार्वतीदेवी सुखदा सर्वकामदा ॥४७॥
इति त्रिपुरुषन्यासः। इति श्री सूत्रधार मण्डनविरचिते वास्तुशास्त्रे प्रासादमण्डने जगती
दृष्टिदोषायतनाधिकारे द्वितीयोऽध्यायः ।।२।। शिवमुख का एक तृतीयांश भाग कम करके दो सृतीयांश भाग सक विष्णु की अंधाई रक्खें । और विष्णु के मुखाद्ध भाग तक ब्रह्मा को ऊंचाई रक्खें । ब्रह्मा की ऊंचाई के बराबर पार्वती देवी को ऊंचाई रखें । यह नियम सुखदायक और सब इच्चितफल देनेवाला हैं ।१४७॥ अपराजित पृच्छा में भी कहा है कि---
"ब्रह्मा विष्णुस्तथा रुद्र-रत्येकस्मिन् वा पृथगृहे । भूयो न्यूनन्यूनतश्च रुद्रो हरिः पितामहः ॥ अंशोनश्च हराद्विष्णु-विष्णोर पितामहः । वामदक्षिरणयोगेन मध्ये रुद्र च स्थापयेत् ।। संस्थाप्य च शुभं का नुपाचाः सुजनाः प्रजाः । प्रकर्तव्य स्थल विप्राद्याः समे यान्ति समन्वितम् ।। ताभ्यां लस्बो यदा रुद्र : क्षयो राशि जने मृतिः । राष्ट्रक्षोभो नृपयुद्ध ब्रह्मविष्णू समौ यदा ।। अनावृष्टिर्जने मारि- हस्वे जनार्दने । विपर्यये नृपायाश्च मस्वस्था प्रति प्रजा !" सूत्र १३६ .