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सप्तमोऽध्यायः
अपराजित पृच्छा सूत्र. १६६ में श्लोक ४ में विज्ञान के मुख्य तीन प्रकार लिखे हैं । देखो"faarara fafearfरण क्षिप्तान्युत्क्षिप्रकाभि व 1
समलानि ज्ञेयानि उदितानि far कम तु ॥" क्षिप्त, उत्क्षिप्त श्रोर समतल ये तीन प्रकार के विज्ञान कहे हैं।
वर्ण और जाति के चार प्रकार के वितान
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"पयको नाभिच्छन्दका सभामार्गस्तृतीयकः ।
मन्दारक इति प्रोक्तो वितानाश्च चतुर्विधाः ।" अप० सू० १८६ श्लो०६ पद्मक, नाभिच्छंद, सभामार्ग और मन्दारक के चार प्रकार के वितान हैं। rant froजातिः स्यात् क्षत्रियो नाभिच्छन्दकः ।
सभामा भवेद्द वैश्यः शुद्रो मन्दारकस्तथा ॥" लो० ७
ब्रह्मण जाति का पद्मक, क्षत्रिय जातिका नाभिछेद, वैश्यजातिका सभामार्ग और शूद्रजातिका मंदारक नामका वितान हैं।
"शक: बेतव: स्यात् क्षत्रियो रक्तवकः ।
फिर अपराजित पृच्छा सूत्र १६० में भी चार प्रकारके वितान कहे है
"वितानांच प्रवक्ष्यामि भेदैस्तच चतुविधम् ।
पद्मकं नाभिच्छन्दं च सभा मन्दारकं तथा । लो० १ शुद्ध छन्दसंघाटो भित्र उद्धिन एव च ।
एतेषां सन्ति ये मेदाः कथयेताच ममागतः ॥ श्र०
सभामार्गो भवेत् पीतो मन्दारः सर्ववर्णकः ॥" इलो० ८
सफेद व का पद्मक, लाल वर्ग का नाभिछंद, पीले व का सभामा और अनेक व का मंदारक है |
चार प्रकार के वितानों को कहता हूं। पद्मक, नाभिच्छंद, सभा और मन्दारक इन नार प्रकार के वितान के शुद्ध, संघाट, भिन्न और उद्भिन्न ये चार भेद हैं । उसको संक्षेप से कहता है । " एकत्वे च भवेच्छुद्धः संघाश्च द्विमिश्ररणात्।
त्रिमिश्रा तथा भिन्ना उद्भिश्चतुरविताः ॥ श्र० ३
एकही प्रकारकी प्राकृति वाले शुद्ध, दो प्रकार की मिश्र प्राकृति वाले संघाट, तीग प्रकार को प्राकृति वाले भिन्न और चार प्रकार की प्राकृति वाले उद्भिश कामके वितान है। "पद्मनाभं सभाप सभामन्दारकं तथा । कमलोद्भवमादयाल
मिश्रकाणां चतुष्टयम् ॥" ०४