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प्रासावमरखने
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प्रतिक्षा के दिन रात्रि में देवालय बंध होने के बाद प्रातःकाल खोलने के समय देवका प्रथम दर्शन ब्राहास कुमारी केरे, बाद में दस लोग दर्शन करें ।।८। सूत्रधार पूजन
'इत्येवं विविधं कुर्यात् सूत्रधारस्य पूजनम् । भूवित्तवस्त्रालङ्कार-मिहिभ्यश्च वाहनः ॥२॥ अन्येषां शिल्पिनां पूजा कर्तव्या कर्मकारिणाम् ।
स्वाधिकारानुसारेण वस्त्रैस्ताम्बूलभोजनः ॥८॥ अच्छी तरह विधि पूर्वक देव के प्रतिष्ठित होने के बाद भूमि, धन, वस्त्र और असंकारों से तथा गाय, मैंस और घोड़ा आदि वाहनों से सूत्रधार को सम्मान पूर्वक पूजा करें। एवं काम करने वाले अन्य शिल्पिों की भी उनके योग्यतानुसार वख, तांदल और भोजन आदि से सम्मान पूर्वक पूजा करें ॥८२-८३।। देवालयय निर्माण का फल
काठपाषाणनिर्माण-कारिणो यत्र मन्दिरे ।
अक्तेऽसौ च तत्र सौख्यं शङ्करनिदशैः सह ||४|| काष्ठ अथवा पाषाण प्रादिका प्रासाद जो बनवाता है, वह देवलोक में महादेव तथा अन्य देवों के साथ सुखको भोगता है ॥८४॥ सूत्रधार का आशिर्वाद
पुण्यं प्रासाइज स्वामी प्रार्थयेत् पत्रधारतः । सूत्रधारो वदेत स्वामिन् ! अक्षयं मवतात् तव ।।८॥
इति सूत्रधारपूजा। देवालय बनवाने वाला स्वामी सूत्रधार से प्रासाद बंधवाने के पुण्य की प्रार्थना करें, तब सूत्रधार प्राशीर्वाद देखें कि--'हे स्वामिन् देवालय बंधवाने का तुम्हारा पुण्य अक्षय हो' ||८ प्राचार्य पूजन
प्राचार्य पूजनं कृत्वा वस्त्रस्वर्णधनैः सह । दानं दद्याद् द्विजातिभ्यो दीनान्धदुर्वलेषु च ॥८६॥
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१. 'इस्यनन्तरतः'।