________________
............
...
प्रासादमारने
mare
-mee
प्रासावदेव म्यास
प्रासादे देवतान्यासं स्थावरेषु पृथक पृथक ।
खरशिलायां वाराहं पौन्यां नागकुलानि च ॥६॥ प्रासाद के थरों और अंगोपांगों में अलग २ देवों का म्यास करके पूजन करें। खरशिला में वाराह देव और भीट के घर में नागदेव का न्यास करें ।।६।।
प्रकुम्मे जलदेवांश्च पुष्पके किंसुरांस्तथा ।
'नन्दिनं जाड्यकुम्भे च कर्णाज्यां स्थापयेद्धरिम् ॥४०॥ कुम्भ के घर में जलदेव, पुष्पकंठ के घर में किन्नरदेव, बायकुम्भ में नदीदेव, और कारणका के घर में हरिदेव का न्यास करें ॥७०||
गणेशं गजपीठे स्या-दश्वपीठे तथाश्विनौ ।
नरपी नरांश्चैत्र धर्मा च खुरके पजेत् ॥७१॥ गपीठ में गणेश, अश्वमोठ में दोनों अश्विनीकुमार, नरपीठ में नरदेव और खुरा के पर मैं पृथ्वोदेवी का न्यास करके पूजन करें ।।७१।।
भद्रे संध्यात्रयं कुम्भे पार्वती कलशे स्थिताम् ।
कपोताल्यां च गान्धर्वान् मनिकायां सरस्वतीम् ।।७२॥ भद्र के कुम्भ में तीन संध्यादेवी, कला के घर में पार्वतीदेवी, केवाल के घर में गांधर्षदेक और मांधी के घर में सरस्वती देवी का न्यास करें ।।७।।
जवायां च दिशिपाला-निन्द्रमुद्गमे संस्थितम् ।
सावित्री भरलीदेशे शिरावव्यां च देविकाम् ॥७३।। जंघा के घर में दिक्पाल, उनम के घर में इन्द्र, भरणी के घर में सावित्री और शिराबटी के घर में भाराधार देवी कान्यास करे ॥७३॥
विद्याधरान् कपोताल्या-मन्तराले सुसंस्तथा ।
पर्जन्यं कूटच्छाधेच ततो मध्ये प्रतिष्ठयेत् ॥७॥ केवाल के घर में विद्याधर, अंतराल के घर में किन्नरादि सुर और छज्जा के परमें पर्जन्य ( मेघ ) देव, इनका न्यास करें। अब भीतर के मध्य भाग में देवों का न्यास कहते हैं ॥१७॥ १. 'नन्दिनी'। २. 'स्रष्टार कुम्भके' अप० सु. १५ श्लो० ८ ।
--Mari.tammmmmm
Lawunusunelawane