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Surescere
सर्वेषां धनमाधारः प्राणीनां जीवनं वित्ते दते प्रतुष्यन्ति मनुष्याः पितरः सुराः ||८७ ||७||
परम् ।
इति प्रतिष्ठाविधिः । प्रतिष्ठाका कार्य समाप्त होने के बाद वस्त्र और सुध आदि धन से आचार्य की पूजा करें। पीछे ब्राह्मणों को तथा दीन, ग्रंथ और दुर्बल मनुष्यों को दान देवें। क्योंकि सब प्राणियों कामाधार धन हैं, और यही प्राणियों का श्रेष्ठ जीवन हैं। धन का दान देने से मनुष्य, पितृदेव और मध्य देव संतुष्ट होते हैं |८६-८७
जिनवेव प्रतिष्ठा
प्रतिष्ठा वीतरागस्य
जिनशासनमार्गतः । नवकारैः सूरिमंत्रैश्व सिद्ध केवलिभाषितैः ॥ ८८ ॥
atar देव की प्रतिष्ठा जैन शासन में बतलाई हुई विधि के अनुसार, सिद्ध हुए केवलज्ञानियों ने कहे हुए नवकार मंत्र और सुरिमंत्रों के उच्चारण पूर्वक करनी चाहिये
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ग्रहाः सर्वज्ञदेवस्य पादपीठे प्रतिष्ठिताः । येनानन्तविभेदेन मुक्तिमार्ग उदाहृताः ॥८६॥ जिनानां मातरो या पक्षियो गौतमादयः । सिद्धाः कालत्रये जाताश्चतुर्विंशतिमूर्तयः ॥ ६० ॥
सर्वदेव के पादपीठ ( पचासन) में नवग्रह स्थापित करें। ये जिनदेव अनन्त भेदों से मुक्ति मार्ग के अनुगामी कहे गये है | जिनदेव की माता, यक्ष, पक्षिणी और गौतम श्रादि गणधर आदि की मूर्तियां तथा तीन काल में सिद्ध होनेवाले चौबीस २ जिनदेव की मूर्तियां है
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इति स्थाप्या जिनावासे त्रिप्राकारं गृहं तथा ।
aaj शिखरं मन्दारकं स्वष्टापदादिकम् ॥ ६१ ॥
२. 'नदोश्वरं ।' ७.० २१
मूर्तियां जिनालय में स्थापित करें। जिनालय समवसरण वाला, सवरणा वाला.
शिखर वाला, गुम्बद वाला और अपद वाला बनाया जाता है ।। ६१ ।।